बैंकों को प्राइवेट (Banks Privatisation) करने की प्रक्रिया अब रफ्तार पकड़ रही है. अगले हफ्ते बैंकों के नाम का ऐलान हो सकता है. बजट 2021 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया था कि दो पब्लिक सेक्टर बैंकों और एक इंश्योरेंस कंपनी को प्राइवेट किया जाएगा. अगले हफ्ते होने वाली बैठक को लेकर चर्चा जोरों पर है. ज्यादातर बैंक इस लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन, किन दो नामों का ऐलान होगा यह वक्त बताएगा. फिलहाल, प्राइवेट सेक्टर उन बैंकों में ज्यादा रुचि दिखा सकते हैं, जिनके पास दूसरे बिज़नेस भी है.
प्राइवेट सेक्टर के निवेशकों के पास इन बिज़नेस को बढ़ाने का मौका मिल सकेगा. हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन कदमों से ग्राहकों पर कोई खास असर नहीं होगा. लेकिन, निवेशकों पर इसका असर हो सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra), इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India), बैंक ऑफ इंडिया (Bank of India) के प्राइवेटाइजेशन पर काम चल रहा है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 14 अप्रैल को नीति आयोग, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की अहम बैठक होनी है. बैठक में उन दो बैंकों के नामों पर फैसला लिया जाएगा, जिसका निजीकरण होगा. नीति आयोग ने 4-5 बैंकों के नामों का सुझाव दिया है. नीति आयोग ने इन बैंकों की वित्तीय हालत, कर्ज का बोझ और कुछ अन्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए डिटेल्ड रिपोर्ट तैयार की है. इनमें से कुछ बैंक अभी रिजर्व बैंक के प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) में हैं. सूत्रों की मानें तो सरकार इन बैंकों में पहले पैसा डालेगी और बाद में इनका निजीकरण कर दिया जाएगा. इसके अलावा मर्जर ऑप्शन पर भी विचार हो सकता है.
वॉयस ऑफ बैंकिंग के फाउंडर अशवनी राणा के मुताबिक, वित्त मंत्री ने अपने बजट में बैंकों का निजीकरण (Banks Privatisation) करने का संकेत दिया था. सरकार का बैंकों के हालात को सुधारने के लिए बैंकों का निजीकरण करने का निर्णय ठीक नहीं है. सरकार आत्मनिर्भर भारत की बात करती है लेकिन बैंकों के निजीकरण से सरकार के इस सपने को पूरा होने में निजी बैंकों का उतना योगदान नहीं होगा, जितना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का होगा. बैंकों के राष्ट्रीकरण में भी प्रमुख कारण निजी बैंकों का देश की प्रगति में योगदान न करना था. राष्ट्रीयकरण से पहले 700 से अधिक बैंक डूबे थे. समय समय पर बड़े-बड़े निजी बैंकों की हालत खराब होने की स्तिथि में सरकार द्वारा ही इन बैंकों को बचाया जा सका.
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बैंकों के निजीकरण (Banks Privatisation) करने से निजी बैंक अपने घराने के उद्योगों के लिए पब्लिक के पैसे का इस्तेमाल करेंगे. रोजगार के साधनों में भी कमी आएगी और आरक्षण की सुविधा भी बंद हो जाएगी. ग्राहकों को भी ज्यादा सर्विस चार्ज और लोन पर ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ेगा. इसलिए बेहतर होगा सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के इन बैंकों को निजी हाथों में सौंपने की जगह इनको सुदृढ़ करे और बैंकों के हालात सुधारने के लिए सभी स्टेक होल्डर से बात करके कोई दूसरा रास्ता खोजे.
नीति आयोग ने यह तय कर लिया है कि किन बैंकों का निजीकरण नहीं होगा. इनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, PNB, बैंक ऑफ बड़ौदा के अलावा जिन बैंकों का पिछले कुछ समय में एकीकरण किया गया है, उनको प्राइवेटाइजेशन से बाहर रखा गया है. इस समय देश में 12 सरकारी बैंक हैं.
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