Auto-debit: नेशनल ऑटोमेटेड क्लीयरिंग हाउस (NACH) प्लेटफॉर्म के माध्यम से असफल ऑटो-डेबिट रिक्वेस्ट की संख्या में जुलाई में गिरावट आई है. ये उधारकर्ताओं (Borrowers) में फाइनेंशियल स्ट्रेस के कम होने का संकेत है. करीब तीन महीनों बाद इस ट्रेंड में रिवर्सल देखा गया है. कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में असफल ऑटो-डेबिट रिक्वेस्ट की संख्या में अचानक बढ़ोतरी देखने को मिली थी. ऑटो-डेबिट रिक्वेस्ट के असफल होने के कई कारण है. इनमें से सबसे प्रमुख कारण ग्राहकों के अकाउंट में बैलेंस न होना है.
NACH के आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में इनिशिएट किए गए 86.4 मिलियन ट्रांजैक्शन में से 33.23 प्रतिशत या 28.74 मिलियन ट्रांजैक्शन विफल रहे, जबकि 57.7 मिलियन सफल रहे. जून की तुलना में बाउंस रेट में यह अच्छा सुधार है.
जून में इनिशिएट किए गए कुल 87.8 मिलियन ट्रांजैक्शन में से 36.5 प्रतिशत से अधिक या 32 मिलियन ट्रांजैक्शन विफल रहे थे. मई में 35.91 प्रतिशत या 30.8 मिलियन ट्रांजैक्शन विफल रहे.
अप्रैल में इनिशिएट किए गए 85.4 मिलियन ऑटो-डेबिट ट्रांजैक्शन में से 56.3 मिलियन सफल रहे, जबकि 29.08 मिलियन विफल रहे, जो कुल ट्रांजैक्शन का 34.05 प्रतिशत है.
कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के शुरू होने से ठीक पहले मार्च में केवल 32.7 प्रतिशत ऑटो-डेबिट ट्रांजैक्शन विफल रहे थे. दिसंबर के बाद से असफल ऑटो-डेबिट रिक्वेस्ट में लगातार गिरावट देखी जा रही थी और यह 40 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है.
मार्च में 32.7 प्रतिशत के निचले स्तर को छूने के बाद, दूसरी लहर के कारण अप्रैल से ऑटो-डेबिट पेमेंट बाउंस बढ़ने लगा और मई और जून में हाई पर रहा. लेकिन जुलाई में कोविड की दूसरी लहर के प्रभाव के धीरे-धीरे कम होने के साथ यह भी नीचे आया.
ऑटो-डेबिट ट्रांजैक्शन में गिरावट पिछले साल जून में चरम पर थी, जब फेलियर रेट 45 प्रतिशत से अधिक था.
इन्वेस्टमेंट इंफॉर्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया लिमिटेड (आईसीआरए) के वाइस-प्रेसिडेंट अनिल गुप्ता ने कहा, ‘बाउंस रेट – वैल्यू और वॉल्यूम दोनों के संदर्भ में जुलाई में नीचे हैं, और रिकवरी अच्छी रही है.
इस बार, लॉकडाउन उतने प्रतिबंधात्मक (restrictive) नहीं थे, जितने पहली लहर के दौरान थे. इकोनॉमिक इम्पैक्ट तुलनात्मक रूप से कम था.
बाउंस रेट में यह गिरावट बरकरार रहनी चाहिए. हम अब तक बाउंस रेट के पूर्व-कोविड लेवल तक नहीं पहुंचे हैं. सिस्टम में अभी भी कुछ स्ट्रेस है’.
NACH प्लेटफॉर्म के डेटा में इंट्रा-बैंक ट्रांजैक्शन शामिल नहीं है और इसलिए यह फाइनेंशियल सिस्टम में किए गए सभी डेबिट रिक्वेस्ट को रिप्रजेंट नहीं करता है.
NACH प्लेटफॉर्म के माध्यम से असफल ऑटो-डेबिट रिक्वेस्ट को आम तौर पर बाउंस रेट के रूप में संदर्भित किया जाता है. NACH, एक बल्क पेमेंट सिस्टम है जिसे नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ऑपरेट करता है.
यह डिविडेंड इंटरेस्ट, सैलरी, पेंशन जैसे पेमेंट की सुविधा देता है. इसके अलावा इलेक्ट्रिसिटी, गैस, टेलीफोन, वॉटर, लोन की इंस्टॉलमेंट, म्यूचुअल फंड में इन्वेस्टमेंट और इंश्योरेंस प्रीमियम जैसे पेमेंट कलेक्शन भी इसके जरिए किए जाते हैं.