कच्चे तेल के दाम में फिर उबाल आने लगा है. पिछले एक हफ्ते में कच्चा तेल 75 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 80 डॉलर प्रति बैरल के करीब आ गया है. इस बढ़ोतरी ने भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती की संभावना को कम कर दिया है. ऑयल मार्केटिंग कंपनियां (OMC) उपभोक्ताओं को कटौती का लाभ देना शुरू करें, इसके लिए जरूरी है कि कच्चा तेल लंबे समय तक 80 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रहे. पिछले साल मई से अबतक देश में पेट्रोल-डीजल की खुदरा कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
पिछले साल अप्रैल से जून के बीच कच्चा तेल रिकॉर्ड 116 डॉलर प्रति बैरल पर था, तब कंपनियों ने बिना कीमत बढ़ाए ईंधन की खुदरा बिक्री की. इस वजह से देश की तीनों तेल मार्केटिंग कंपनियों को अप्रैल से सितंबर के दौरान संयुक्तरूप से 21,201.18 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. इस साल जनवरी में कच्चा तेल 78 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गया, लेकिन तेल कंपनियों ने नुकसान की भरपाई के लिए खुदरा कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उम्मीद बढ़ गई थी कि तेल कंपनियों का नुकसान पूरा होने पर खुदरा कीमतों में कटौती होगी.
तेल की कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जाने की आशंका ने पेट्रोल- डीजल की खुदरा कीमतों में कटौती को एक बार फिर प्राथमिकता सूची से बाहर कर दिया है. ऑयल रिफाइनरी कंपनियों का कहना है कि वो 85 से 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को तो सहन कर सकती हैं, लेकिन इससे अधिक दाम बढ़ते हैं, तो फिर उन्हें मौजूदा खुदरा कीमतों पर बिक्री जारी रखने पर नुकसान होगा.
क्यों आया कच्चे तेल में उबाल
सऊदी अरब और रूस के हाल ही में कच्चे तेल के उत्पादन में कटौती करने की घोषणा के बाद से तेल की कीमतों में उछाल आना शुरू हुआ है. कच्चे तेल में इस हालिया तेजी को अमेरिका में कम होती महंगाई से भी हवा मिल रही है. 19 जुलाई को ब्रेंट क्रूड ऑयल का दाम 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार कर रहा था. तेल मंत्रालय के मुताबिक मई और जून के महीने में भारत के लिए क्रूड ऑयल का औसत दाम 75 डॉलर प्रति बैरल से कम रहा है. अमेरिका अगर कच्चे तेल की आपूर्ति को टाइट करता है, तब तेल की कीमतों में और तेजी आ सकती है.
कटौती की संभावना पर पड़ा असर
इंडिया क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के वाइस प्रेसिडेंट प्रशांत वशिष्ठ कहते हैं कच्चे तेल की कीमतों में हालिया तेजी से कटौती की संभावनाओं पर असर पड़ा है. कोई भी निर्णय लेने से पहले OMC अब इंतजार करेंगी और देखेंगी कि कच्चे तेल की कीमतें कैसे बढ़ती हैं. तेल कंपनियां अब पहले की तरह आरामदायक स्थिति में नहीं है. पहले उन्हें करीब 12 रुपए का भारी मार्जिन हो रहा था. लेकिन अब ये मार्जिन बहुत कम हो गया है. कच्चे तेल में 7 से 8 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी हो चुकी है.
तेल मारेगा और उफान
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि तेल की मांग 22 लाख बैरल प्रतिदिन बढ़कर 2023 के अंत तक 10.21 करोड़ बैरल प्रतिदिन पर पहुंच जाएगी. तेल निर्यातक देशों का समूह ओपेक, तेल की इस वैश्विक मांग को लेकर काफी उत्साहित है. रूस सहित ओपेक देशों के उत्पादन में कटौती करने और तेल की मांग बढ़ने से 2023 की दूसरी छमाही में तेल की कीमतें और ज्यादा बढ़ने की आशंका है.
कीमत और न बढ़ने की भी उम्मीद
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के संकेत मिलने. और चीन की कमजोर आर्थिक वृद्धि के कारण तेल की कीमत मौजूदा स्तर पर बनी रह सकती है. तेल उत्पादन में कटौती की घोषणा के बाद कीमत 80 डॉलर को पार कर गई थी, लेकिन वैश्विक मंदी की चिंता के कारण कीमत अब 79 डॉलर के आसपास बनी हुई है. अमेरिका और यूरोप में मंदी गहराने की आशंका से भी कच्चे तेल का 90 डॉलर प्रति बैरल को पार करना भी मुश्किल होगा. अगर लंबे समय में कच्चा तेल 80 डॉलर के स्तर तक बना रहता है, तभी तेल मार्केटिंग कंपनियां खुदरा कीमतों में कटौती का कोई फैसला लेने की स्थिति में होंगी.