सरकार की कोशिशें हैं कि देश में सेमीकंडक्टर का उत्पादन बढ़े, लेकिन इन कोशिशों को बड़ा झटका लगा है. ताइवान की सेमीकंडक्टर कंपनी फॉक्सकॉन और भारतीय कंपनी वेदांता की 19.5 अरब डॉलर वाली डील टूट गई है. फॉक्सकॉन ने इस डील से बाहर निकलने की घोषणा कर दी है. दोनों कंपनियों के बीच पिछले साल यानी 2022 की फरवरी में करार हुआ था लेकिन अब फॉक्सकॉन के पीछे हटने से सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए प्लांट का भविष्य अधर में लटक गया है. साथ ही कई सवाल भी खड़े हो गए हैं. इस रिपोर्ट में हम इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे.
पहला सवाल- फॉक्सकॉन-वेदांता डील: क्या है पूरा मामला?
भारत में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने के लिए ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन और भारतीय कंपनी वेदांता ने हाथ मिलाया था. इसे दुनिया का सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर निर्माण समझौता बताया जा रहा था. ये सेटअप लगने वाला था गुजरात में. दोनों कंपनियों ने 2022 में गुजरात सरकार के साथ एक लाख 54 हजार करोड़ का MoU भी साइन कर लिया था. अब अचानक दोनों कंपनियों के रास्ते अलग-अलग हो गए हैं. जहां एक ओर वेदांता दावा कर रही है कि वो नए पार्टनर की तलाश में है, वहीं दूसरी ओर फॉक्सकॉन भी अकेले दम पर प्लांट लगाने का दावा कर रही है. इस पूरे मामले में सरकार का पक्ष भी सामने आया है. आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने साफ कहा है कि इस जॉइंट वेंचर के टूटने से भारत के सेमीकंडक्टर हब बनने के लक्ष्य पर कोई असर नहीं होगा.
दूसरा सवाल- नए पार्टनर के साथ प्रोजेक्ट को पूरा करेगी वेदांता?
कंपनी का तो यही दावा है. और इसके लिए कंपनी ने नए पार्टनर्स की तलाश भी शुरू कर दी है. वेदांता ने कहा-
“कंपनी अपनी सेमीकंडक्टर परियोजना के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. देश का पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र लगाने के लिए अन्य भागीदारों के संपर्क किया गया है.”
तीसरा सवाल- क्या अकेले सेमीकंडक्टर प्लांट लगाएगी फॉक्सकॉन?
कंपनी ने कुछ इसी तरह के संकेत दिये हैं. फॉक्सकॉन का संचालन करने वाली कंपनी होन हाई टेक्नोलॉजी ग्रुप ने कहा कि वो भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण को लेकर आशांवित है और भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल का मजबूती से समर्थन करती है.
चौथा सवाल- आखिर क्यों टूटी यह डील?
दोनों कंपनियों ने डील टूटने पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन डील टूटने की वजह वेदांता पर भारी कर्ज को बताया जा रहा है. वेदांता की पेरेंट कंपनी वेदांता रिसोर्सेज अप्रैल 2024 तक 4.2 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है. जिसमें जून तक 2 अरब डॉलर का भुगतान तो हो चुका है लेकिन कपंनी पर अब भी 2.2 अरब डॉलर कर्ज बचा हुआ है.
पांचवां सवाल- जिन सेमीकंडक्टर के लिए यह सब लड़ाई चल रही है, वे आखिर किस काम आते हैं?
सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल बिजली से चलने वाले कई उपकरणों में होता है. इनका इस्तेमाल कारों से लेकर बाइकों तक में और टीवी से लेकर मोबाइलों तक में होता है. फिलहाल ताइवान असेंबलिंग, पैकेजिंग और टेस्टिंग के मामले में दुनिया में सबसे आगे है वहीं चीन दुनिया में सबसे अधिक सेमीकंडक्टर का निर्माण करता है. दुनियाभर में सेमीकंडक्टर की बढ़ती मांग को देखते हुए भारत सरकार की योजना भी देश को सेमीकंडक्टर हब बनाने की है.
छठा सवाल – फॉक्सकॉन के साथ डील का टूटना, क्या सरकार की कोशिशों को झटका है?
शायद हां… ये तो जाहिर है कि सेमीकंडक्टर के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है और इन्हीं प्रयासों के तहत फॉक्सकॉन के साथ वेदांता का करार हुआ था. सरकार माइक्रॉन जैसी दूसरी कंपनियों के साथ भी उत्पादन के लिए बात कर रही है लेकिन माइक्रॉन के साथ जो बात हुई है, उसके तहत वह भारत में सिर्फ एसेंबली, टेस्टिंग और पैकेजिंग का काम करेगी. जबकि फॉक्सकॉन और वेदांत मिलकर भारत में उत्पादन करने वाले थे. अब दोनों कंपनियों में क्योंकि करार टूट चुका है, ऐसे में देखना होगा कि दोनो कंपनियां अलग-अलग सेमीकंडक्टर उत्पादन शुरू करती हैं या नहीं.