ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से ग्राहकों को गुमराह करने और उन्हें ठगने पर लगाम लगाने के लिए सरकार काफी सख्ती बरत रही है. इसके बावजूद कंपनियों की मनमानी थमने का नाम नहीं ले रहीं. अब एक नए सर्वे में ये पता चला है कि ऑनलाइन बैंकिंग में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. दस में से छह उपयोगकर्ता यानी 60 फीसद लोग इस तरह की ठगी का शिकार हो रहे हैं. ये बात सामुदायिक प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स की एक रिपोर्ट में सामने आई है.
सर्वे में पता चला कि लगभग छह उपयोगकर्ताओं ने ऑनलाइन बैंकिंग प्लेटफ़ॉर्म पर ड्रिप मूल्य निर्धारण यानी हिडेन चार्जेज को लेकर धोखा खाया है. सर्वे में शामिल लोगों ने कहा कि उन्होंने उनसे ऐसे हिडेन चार्जेस लिए गए जिनका पहले खुलासा नहीं किया गया था, लेकिन बाद में उनके खाते से पैसे काट लिए गए. वहीं ड्रिप प्राइसिंग में उत्पादों या सेवाओं के लिए कम कीमत पेश की जाती है, जिसे बिक्री के अंत में बढ़ा दिया जाता है.
44,000 से ज्यादा यूजर्स को किया गया शामिल
यह सर्वे भारत के 363 जिलों में स्थित ऑनलाइन बैंकिंग के 44,000 से अधिक यूजर्स की प्रतिक्रियाओं पर आधारित है. इसमें पाया गया कि ये वेबसाइटों और ऐप्स की ओर से उपयोग की जाने वाली तरकीबें हैं जो उपभोक्ताओं को उत्पाद या सेवाएं खरीदने, किसी सेवा के बारे में शुल्क छिपाने, या उपभोक्ताओं को मेंबरशिप लेने के लिए मजबूर करती है. सर्वेक्षण में 32 प्रतिशत ऑनलाइन बैंकिंग उपयोगकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने मजबूरन मेंबरशिप लेने का अनुभव किया है.
वहीं सर्वे में शामिल 39 प्रतिशत बैंकिंग उपयोगकर्ताओं ने कहा कि उन्हें बेट एंड स्विच का भी हिस्सा बनना पड़ा. उदाहरण के लिए, ग्राहकों को आकर्षक ब्याज दर के साथ जमा और ऋण का विज्ञापन दिया गया था, लेकिन जब लेनदेन बंद हुआ तो ब्याज दर अलग थी.
सरकार ने जारी किए थे दिशानिर्देश
ई-कॉमर्स कंपनियों के भ्रामक व्यवहार को रोकने के लिए सरकार ने सख्त रवैया अपनाते हुए 30 नवंबर को इस सिलसिले में कुछ दिशानिर्देश जारी किए थे. जिनमें 13 तरह के डार्क पैटर्न की पहचान की गई है. इसका मकसद उपयोगकर्ताओं को गुमराह करने वाले ई-कॉमर्स कंपनियों की चाल से बचाना है. सरकार का मानना है कि कस्टमर्स को अंधेरे में रखकर उनसे शुल्क वसूलना या सही जानकारी न देना, उपभोक्ता स्वायत्तता को खराब करना है. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के मुताबिक यह भ्रामक विज्ञापन या अनुचित व्यापार व्यवहार या उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन है.
क्या होता है डार्क पैटर्न?
डार्क पैटर्न का इस्तेमाल ग्राहकों को गुमराह करने के लिए किया जाता है. जैसा आपने कई बार शॉपिंग करते वक्त ई-कॉमर्स साइट्स पर लिखा देखा होगा कि स्टॉक खत्म होने वाला है या फिर किसी प्रोडक्ट के बस 1 या 2 ही पीस ही बचे हैं. इसमें इंटरनेट आधारित कंपनियां, उपयोगकर्त्ताओं को कुछ शर्तों से सहमत होने या कुछ लिंक पर क्लिक करने के लिये बरगलाती हैं. डार्क पैटर्न का उपयोग करके डिजिटल प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ता की ओर से उपयोग की जा रही सेवाओं और उनके ब्राउज़िंग अनुभव पर उनके नियंत्रण के बारे में पूरी जानकारी का अधिकार छीन लेते हैं.