भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के द्वारा खुले बाजार बिक्री योजना (OMSS) के तहत बिक्री के लिए रखे गए चावल के दाम ज्यादा होने की वजह से कारोबारी खुले बाजार से खरीदारी को तरजीह को दे रहे हैं. यही वजह है कि OMSS के तहत बिक्री के लिए रखे गए चावल का उठाव कम है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एथेनॉल बनाने वाली कंपनियां खुले बाजार से ब्रोकेन राइस की खरीदारी 26-26.50 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर कर रही हैं. दूसरी ओर FCI के द्वारा OMSS के तहत चावल की बिक्री को अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिल रहा है. कारोबारियों के मुताबिक व्यापार जगत में रुचि पैदा करने के लिए एफसीआई को चावल के दाम में कमी करनी होगी.
दिल्ली के स्थानीय कारोबारियों का कहना है कि एफसीआई के चावल का 29 रुपये प्रति किलोग्राम का रिजर्व प्राइस सरकार को कम लग सकता है, लेकिन यह भाव खुले बाजार में उपलब्ध उसी चावल की तुलना में ज्यादा है. उनका कहना है कि एफसीआई को ओएमएसएस के तहत चावल की बिक्री के लिए कीमत को कम करना होगा. उनका कहना है कि ओएमएसएस के तहत एफसीआई द्वारा चावल की बिक्री को लेकर कुछ सवाल हैं, जैसे कि चावल की बिक्री 29 रुपये प्रति किलोग्राम पर होती है और उस पर कारोबारियों को जीएसटी चुकाना पड़ता है. इसके अलावा जूट की बोरियों के लिए भी अलग से खर्च करना पड़ता है. साथ ही परिवहन लागत भी इसमें जुड़ने की वजह से व्यापारियों द्वारा इस कीमत पर चावल की खरीद करना व्यवहारिक नहीं है.
इसके विपरीत एथेनॉल बनाने वाली कंपनियों को इस तरह की समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता है. साथ ही उन्हें उन व्यापारियों को भुगतान करने का भी समय मिलता है जो उन्हें चावल की सप्लाई करते हैं. इसीलिए व्यापारी खुले बाजार से चावल की खरीदारी करना पसंद करते हैं. व्यापारियों और उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि एफसीआई के ओएमएसएस बिक्री को लेकर खराब स्थिति इसलिए बनी हुई है क्योंकि सरकारी अधिकारी चावल के व्यापार की गतिशीलता को समझने में विफल रहे हैं.
उनका मानना है कि वे गेहूं और चावल को दरअसल एक ही चश्मे से देखते हैं, जो कि देश में चावल की अनगिनत किस्मों और हर इलाके में उपभोक्ताओं की उनकी पसंद को देखते हुए ठीक नहीं है. सरकार महंगाई को कम करने के प्रयासों के तहत ओएमएसएस के तहत चावल की बिक्री कर रहा है, लेकिन उसके बावजूद चावल की कीमतों में इजाफा दर्ज किया गया है.