दालों की जमाखोरी और बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने कहा है कि 15 अप्रैल से दाल कारोबारियों, आयातकों और मिलर्स को अपने स्टॉक की देनी जानकारी होगी. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि कस्टम के वेयरहाउसेज में बड़ी मात्रा में आयातित दालें रखी हुई हैं. उपभोक्ता मामलों के विभाग ने जरूरी वस्तुओं की रियल टाइम स्टॉक की पोजीशन का आकलन करने के लिए राज्यों, कारोबारियों और आयातकों के साथ कई बैठके की हैं.
उपभोक्ता मामलों का विभाग इसके अतिरिक्त दलहन आयात के बाद बाजार में दालों की आवक में देरी के कारणों का भी आकलन कर रहा है. उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने कहा है कि अभी फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है, लेकिन हम फिर भी सतर्क हैं. उन्होंने कहा कि चना और अन्य सभी दालों की उपलब्धता के साथ ही कीमतों पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है ताकि किसानों और उपभोक्ताओं को नुकसान नहीं पहुंचे.
खरे का कहना है कि कृषि मंत्रालय ने संकेत दिया है कि चने की फसल की पैदावार में कमी नहीं आई है. हालांकि मौजूदा समय में 2023-24 फसल वर्ष (जुलाई-जून) के लिए चने का कुल उत्पादन 12.1 मिलियन टन रहने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पिछले साल चने का उत्पादन 12.2 मिलियन टन दर्ज किया गया था.
उन्होंने कहा कि गुजरात में हाल ही में किए गए फसल काटने के प्रयोगों से संकेत मिलता है कि चने की पैदावार बरकरार है और मंडियों में आवक बढ़ रही है, जिसकी वजह से भाव कम होकर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP के स्तर पर आ गया है. हालांकि कारोबारी सूत्रों का अनुमान है कि प्रमुख दालों का उत्पादन आधिकारिक अनुमान से काफी कम हो सकता है. मौजूदा समय में सरकार के पास प्राइस स्टेबलाइजेशन फंड के तहत खरीदे गए एक मिलियन टन रॉ चने का बफर स्टॉक है.