देश में कपास के घटते उत्पादन को लेकर संसदीय समिति चिंतित है. संसद की श्रम, कौशल विकास और कपड़ा मामलों की संसदीय समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि देश को कपास की नई वैरायटी के बीजों और पौधों की सख्त जरूरत है. नई वैरायटी के बीज और पौधे मिट्टी और जलवायु की परिस्थितियों के अनुकूल होंगे. रिपोर्ट में कहा गया है कि नई वैरायटी से जलवायु परिवर्तन की वजह से कपास के उत्पादन में जो कमी आ रही है उससे निपटने में मदद मिलेगी. कपड़ा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2022-23 में देश में कपास का रकबा 13,061 लाख हेक्टेयर था, जो कि दुनिया में सबसे अधिक था. हालांकि उपज (यील्ड) सिर्फ 447 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जबकि उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका में उपज 1,065 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी.
अन्य उत्पादक देशों की तुलना में भारत में कपास की उपज कम
संसदीय समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि बीटी कॉटन और अन्य समान गुण वाले बीज के अतिरिक्त देश को कपास के बीज/पौधों की ऐसी वैरायटी की सख्त जरूरत है जो देश की मिट्टी और जलवायु की परिस्थितियों के लिए अनुकूल एवं उपयुक्त हों. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में प्रति हेक्टेयर किलोग्राम उपज अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देशों की किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज की तुलना में काफी कम है. समिति का कहना है कि भारत में प्रति हेक्टेयर पैदावार कम इसलिए है क्योंकि देश में बीटी कॉटन के बीज की तकनीक पुरानी हो गई है और नई वैरायटी के बीजों की तत्काल जरूरत है.
संसदीय समिति ने दी राय
संसदीय समिति ने कपड़ा मंत्रालय से कपास की उत्पादकता बढ़ाने को लेकर व्यापक अध्ययन करने को कहा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जेनेटिकली मॉडिफाइड बीजों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि किसानों को इन बीजों की खरीदारी हर साल करनी पड़ती है. खेती के ऊपर ज्यादा खर्च की वजह से किसानों को कर्ज लेना पड़ता है और उपज की तुलना में पेस्टिसाइड, फर्टिलाइजर और श्रम की लागत ज्यादा होने से कर्ज की समस्या और भी गंभीर हो जाती है. समिति का मानना है कि देश में सस्ती और जलवायु के अनुकूल बीटी कपास या कपास के बीजों की अन्य हाइब्रिड वैरायटी की उपलब्धता को लेकर बहुत कुछ करने की जरूरत है.