आज विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस (World Senior Citizen’s Day) है. किसी मिडिल क्लास बुजुर्ग को इसकी बधाई देने की कोशिश करेंगे, तो बदले में वे उन्हें परेशान कर रहीं वित्तीय और मानसिक परेशानियों का ब्योरा दे सकते हैं.
नजरअंदाज किए जाने के साथ तेजी से होते तकनीकी बदलाव से कंधा-से-कंधा मिलाकर नहीं चल पाने की वजह से वरिष्ठ नागरिकों को कई तरह की परेशानियों से होकर गुजरना पड़ता है. दवाइयां महंगी होती जा रही हैं. परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ लंबे समय तक उनके कंधों पर रहता है. इन सबके कारण रिटायरमेंट के लिए अच्छी खासी बचत कर चुके बुजुर्गों के लिए भी हालात मुश्किल होते जा रहे हैं.
रिटायर होने के बाद की जिंदगी का मतलब कभी घूमना-टहलना, तीर्थ यात्राओं पर जाना और पुरानी इच्छाओं को पूरा करना होता था. मगर कोरोना वायरस ने उनसे इन चीजों को भी छीन लिया है.
साथी ही, देश में न्यूक्लियर फैमिला का सिस्टम बढ़ने से भी उनकी परेशानियां बढ़ी हैं. ज्यादातर के बच्चे दूसरे शहर या देश में जाकर बस जा रहे हैं. बूढ़े माता-पिता को अकेलेपन का सामना करना पड़ रहा है. वे उतनी आसानी से घर छोड़कर आ-जा भी नहीं सकते. अखबारों में कई बार पढ़ने को मिल जाता है कि किसी बुजुर्ग को घर में मरा पाया गया. उनका अंतिम संस्कार करना भी कोई नहीं आया. सभ्य समाज होने के नाते, हमें शर्मसार होना चाहिए कि ऐसे वाकये आम होते जा रहे हैं.
कमर्शियलाइजेशन की दुनिया में वर्ल्ड सीनियर सिटीजन डे जैसे अवसरों पर सोशल मीडिया पर कई तरह के भारी-भरकम शब्दों वाले पोस्ट देखने को मिल जाते हैं. ब्रांड्स भी भावुक कर देने वाले कैंपेन चलाते हैं. मगर हम इतना ही कर के रुक नहीं सकते.
सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि देश के बुजुर्ग स्ट्रेस-फ्री जिंदगी जी सकें. ठोस कदम उठाए जाने चाहिए. बड़ी अजीब बात है कि जिस देश के ज्यादातर नेता खुद सीनियर सिटीजन की श्रेणी में आते हैं, वहां बुजुर्गों को सबसे अधिक नजरअंदाज किया जाता है.
अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा परिवार के लिए कड़ी मेहनत करने और बच्चों को सुविधाएं देने के लिए कई तरह के बलिदान करने वालों को उम्रदराज होने पर उनके हिस्से का सम्मान मिलना चाहिए. समय तेजी से बीतता जा रहा है और हम समझ नहीं पा रहे हैं कि यह कितनी गंभीर समस्या है. नागरिकों और सरकार को जागने की जरूरत है, ताकि कल को बेहतर बनाया जा सके.
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