कोविड के अंधे मोड़ के बाद कार बाजार का सूरत-ए-हाल ही बदल गया ... छोटी कारों की संख्या सड़कों पर घटने लगी ... बड़ी गाड़ियां फर्राटा भर रहीं. बात बहुत पुरानी नहीं है साल 2018-19 ही तो था कार बाजार में छोटी कारों की हिस्सेदारी 26 फीसद की होती थी. जो बीते साल घटकर 10 फीसद रह गई. जी हां, सिर्फ 10 फीसद ... छोटी कार मतलब जो 5 लाख रुपए के भीतर आ जाए ... इनके ग्राहक कौन थे? अरे वे ही लोग जो कार की सवारी का ख्वाब पाले मोटरसाइकिल पर चल रहे. इंतजार बस डाउन पेमेंट के लिए बोनस मिलने या एफडी पकने का था. कोविड ने केवल इनकी कमाई नहीं, कार खरीदने की उम्मीद तोड़ दी. ये अब तभी लौटेंगे जब कोविड का लहरों का डर खत्म होगा. नौकरी चलती रहने की उम्मीद बंधेगी और कमरतोड़ महंगाई सीधे होने का मौका देगी. यह दिल्ली अभी दूर है. इस दिल्ली की दूरी कारों की बढ़ती कीमतों ने और बढ़ा दी कई..रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बेस मेटल और क्रूड ऑयल की कीमतों में आई तेजी ने वाहन कंपनियों के लिए इनपुट कॉस्ट बढ़ा दी. इस वजह से कंपनियों ने कारों के दाम बढ़ा दिए. देश की सबसे बड़ी कंपनी मारुति इस साल कीमतों में तीन बार इजाफा कर चुकी है. जनवरी 2021 से मार्च 2022 के बीच कंपनी की कारें 8.8 फीसद तक महंगी हो गई हैं. कार बाजार की कहानी में कोविड तो संकट का चरम था. मुश्किलें तो कोरोना से पहले ही शुरू हो गईं थीं. साल 2019-20 में कुल 27,73,519 कारें बिकीं ... यह आंकड़ा 2018-19 में 33,77,389 का था यानी कन्ज्यूमर का कॉन्फिडेंस तो कोविड से पहले ही डोल रहा था, लेकिन सरकार ओला-उबर की आड़ में छुपकर इस मंदी को नकार रही थी. कहानी अभी पूरी नहीं हुई .. आंखों देखा ताजा हाल और सुन लीजिए. कार शोरूम पर हफ्तों की वेटिंग के बोर्ड टंगे हैं. XUV700 के लिए डेढ़ साल की वेटिंग है. किया कारेंस पर साल भर की, थार खरीदने वालों को 8 महीने तो क्रेटा वालों को 9 महीनों का इंतजार करना पड़ेगा. हर जगह कारण एक ही है. चिप शॉर्टेज की वजह से पूरी क्षमता से उत्पादन हो नहीं पा रहा ... हालात सुधरने में करीब सालभर का वक्त लग जाएगा. छोटी गाड़ियों के तलबगार अभी भी कम है ... 10 से ऊपर की गाड़ियों की मांग अच्छी है. इस सेग्मेंट की बाजार में हिस्सेदारी बीते दो साल में 5 फीसद से बढ़कर 11 फीसद हो गई है. इस सेग्मेंट में टाटा मोटर्स हुंडई को पछाड़ रही है. टॉप पर टाटा की नेक्सॉन है सबसे ज्यादा बिकने वाली 5 में से दो कारें टाटा की ही हैं. पहली नेक्सॉन और दूसरी पंच ... वेन्यू और क्रेटा बाजार में पिछड़ी हैं. छोटी गाड़ियों की बिक्री पर असर पड़ने से बाजार की लीडर मारुति को नुक्सान हुआ है. वित्त वर्ष 2019 में कार बाजार में मारुति की हिस्सेदारी 51 फीसद से ज्यादा थी जो 2022 में घटकर करीब 43 फीसद पर आ गई. मोटी बात ऐसे समझिए कि एंट्री लेवल कार खरीदने वालों की संख्या कम है. 10 लाख से ऊपर की कार खरीदने की क्षमता रखने वालों को कारें मिल नहीं रहीं यानी कार बाजार का हाल बीते 3 वर्षों से ऐसा है मानो किसी व्यक्ति के पैर में चोट लगी थी. वह धीरे-धीरे चल रहा था कि पैर की हड्डी टूट गई.