देश में 5G एक मृग मरीचिका या Mirage के जैसे हो गया है. जैसे ही लगता है कि बस अब इसकी लॉन्चिंग हो ही जाएगी, तभी कोई अड़ंगा लग जाता है. नीतियों, इक्विपमेंट, चाइनीज वेंडर्स, फिर स्पेक्ट्रम की कीमतों से होता हुआ 5G के हकीकत बनने का संघर्ष अब प्राइवेट एंटरप्राइज और टेलीकॉम ऑपरेटरों की रस्साकसी के बीच फंस गया है. पूरा देश टकटकी लगाए देख रहा है कि कब 5G की घंटी उनके फोनों में बजेगी? कब बिना बफरिंग के वीडियो देखने का मजा मिलेगा?
पहले ये उम्मीद थी कि जुलाई में स्पेक्ट्रम की नीलामी हो जाएगी और अगस्त में इसकी औपचारिक लॉन्चिंग, लेकिन ये आस अब टूटती दिख रही है. 5G स्पेक्ट्रम पर नई रार छिड़ गई है. इस दफा मैदान में टेक कंपनियां और टेलीकॉम ऑपरेटर लाव-लश्कर लेकर आमने-सामने हैं. 5G नेटवर्क को लेकर एमेजॉन इंडिया, मेटा, TCS, L&T जैसी कंपनियों के ब्रॉडबैंक इंडिया फोरम यानी BIF और सर्विस प्रोवाइडर्स के बीच तकरार है.
BIF में शामिल कंपनियां चाहती हैं कि दुनियाभर की तर्ज पर भारत में भी सरकार उन्हें सीधे स्पेक्ट्रम दे और इस पर न के बराबर एडमिनिस्ट्रेटिव फीस ले. इन कंपनियों का ये भी दावा है कि चूंकि उनका पब्लिक नेटवर्क्स से कोई लेनादेना नहीं है, ऐसे में देश की सिक्योरिटी को भी कोई खतरा नहीं है. यही नहीं, सरकार को अच्छा-खासा रेवेन्यू भी उनसे मिलेगा.
इसके उलट, टेलीकॉम ऑपरेटरों के संगठन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन (COAI) ने साफ बोल दिया है कि अगर इन प्राइवेट एंटरप्राइजेज को कैप्टिव नेटवर्क्स खड़े करने की इजाजत दी गई तो टेलीकॉम ऑपरेटरों के लिए धंधा करना बेमानी हो जाएगा.
COAI का कहना है कि इन कंपनियों को पीछे के दरवाजे से टेलीकॉम के धंधे में उतरने की इजाजत बिलकुल नहीं दी जानी चाहिए. इसके जवाब में टेक कंपनियों ने कहा है कि उन्हें 5G नेटवर्क मिलने से टेलीकॉम ऑपरेटरों को रेवेन्यू लॉस होने की थ्योरी फर्जी है. ट्राई चाहता था कि प्राइवेट कंपनियों को अलग से स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया जाए. लेकिन, डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम यानी DoT ने इसे खारिज कर दिया.
DoT का मानना है कि प्राइवेट एंटरप्राइजेज को टेलीकॉम ऑपरेटरों से स्पेक्ट्रम लीज पर लेना चाहिए. हालांकि, इस पर अंतिम फैसला कैबिनेट में ही होगा और BIF को उम्मीद है कि सरकार DoT के तर्क को खारिज कर देगी और उन्हें अलग से स्पेक्ट्रम आवंटित किए जाने पर ही मुहर लगेगी. अब ये सब कवायद पूरी होने में वक्त लगना तय है. हो सकता है मसला कोर्ट भी चला जाए. लेकिन, बात यहीं तक रुकी नहीं है. अभी एक मसला स्पेक्ट्रम की प्राइसिंग का भी अटका पड़ा है.
भले ही ट्राई ने हाल में स्पेक्ट्रम की रिजर्व प्राइसिंग पर अपनी सिफारिशों में कीमतों को 35 से 40 फीसदी तक कम कर दिया है. लेकिन, कंपनियां इस दाम को भी ज्यादा बता रही हैं. अर्न्स्ट एंड यंग EY ने भी हाल में ही कहा है कि भारत में स्पेक्ट्रम का दाम दुनिया के मानकों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. सरकार भी उहापोह में है और अभी तक कैबिनेट 5G स्पेक्ट्रम की कीमतों को तय नहीं कर पाई है. खैर, 5G की राह में पचड़े तमाम हैं और सरकार अभी अनिश्चय की स्थिति में है.
हां, ये बात दीगर है कि लोग धड़ाधड़ 5G डिवाइसेज को इस उम्मीद में खरीदे जा रहे हैं कि जब 5G आएगा तो बिना बफरिंग वाला पहला वीडियो उन्हीं के फोन में चलेगा. उम्मीद अच्छी है, लेकिन कंपनियों में खिंची तलवारों और सरकार के फैसला न ले पाने के चलते ये जल्दी पूरी होती नहीं दिख रही.
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