कार कंपनियों के उत्पादन और बिक्री के आंकड़ों में असमानता देखने को मिल रही है. आंकड़े बताते हैं अप्रैल में यात्री वाहनों की बिक्री 13 फीसदी बढ़ गई लेकिन वाहनों के वास्तविक रजिस्ट्रेशन की संख्या में सिर्फ़ 3.5 फीसदी का ही उछाल देखने को मिला. अप्रैल के दौरान, यात्री वाहनों की कुल बिक्री 3 लाख 31 हज़ार हुई थी जबकि खुदरा बिक्री सिर्फ 2 लाख 86 हज़ार यूनिट की ही हुई. ये खरीद आम ग्राहकों ने नहीं की है बल्कि डीलरों के पास इन्वेंट्री बढ़कर 2 लाख 51 हज़ार यूनिट हो गई है. देश की प्रमुख ऑटो कंपनी मारुति ने बताया कि थोक बिक्री में 10.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. ह्यूंडई की थोक बिक्री 9 फीसदी बढ़कर 57,851 इकाई पहुंच गई. टाटा मोटर्स की थोक बिक्री में अप्रैल में 10 प्रतिशत से अधिक उछाल आया.
क्या है वजह?
ऐसे कई कारक हैं जिन्होंने लोगों की भावना को बदला है और कारों की खुदरा बिक्री को प्रभावित किया. एक तो ग्रामीण क्षेत्रों में मांग कम थी. वहीं बेमौसमी बारिश और पूर्व खरीदारी हुई. इस सबकी वजह से अप्रैल के महीने में खुदरा स्तर पर वाहनों की बिक्री में गिरावट रही. अप्रैल में वाहनों की कीमत में भी बढ़ोतरी देखी गई क्योंकि कंपनियां बीएस6 की तरफ बढ़ रही हैं और कच्चे माल की कीमतों को लेकर भी दिक्कतें हैं. सेमीकंडक्टर आपूर्ति अभी भी पटरी पर नहीं आ पाई है. आगे अल-नीनो, धीमी आर्थिक वृद्धि जैसे मुद्दे भी हैं. अर्थव्यवस्था बहुत अच्छा नहीं कर रही है, ग्रामीण मांग अभी ठीक नहीं हुई है.
क्या हैं संकेत?
फिलहाल मुद्रास्फीति की दर आरबीआई के आदर्श स्तर से ऊपर है. दूसरी और कर्ज की ब्याज दरें ऊपरी स्तर पर हैं. हालांकि, आम लोगों (उपभोक्ताओं) को इस तरह के बदलावों का अहसास देर से होता है. ऐसे में तब तक ऑटो कंपनियों को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है लेकिन अगले महीने शादी विवाह के ज्यादा लगन हैं जो बदले में खुदरा बिक्री को बढ़ावा दे सकता है. अप्रैल में अच्छे थोक आंकड़े भी इसका संकेत दे रहे हैं. ऐसे में ऑटो सेक्टर की मांग में सुधार देखा जा सकता है.