साइबर ठगों ने रोमन को वर्क फ्रॉम होम के नाम पर 90 हजार रुपए का चूना लगाया. रोमन ने पुलिस में एफआईआर की, साइबर सेल भी गए. स्कैम से जुड़ी सारी जानकारी दी. बैंक के पास भी गए. कई एप्लीकेशन भी लिखी.. लेकिन इन शिकायतों के बाद भी कुछ नहीं हुआ. पैसे वापस नहीं मिले. रोमन अकेले ऐसे पीड़ित नहीं हैं, जिनकी लाख कोशिशों के बाद भी पैसे वापस नहीं मिले. हम लगभग हर दिन साइबर फ्रॉड से जुड़ी खबरें पढ़ते हैं, कभी वर्क फ्रॉम होम तो कभी बिजली बिल स्कैम तो कभी आसान लोन के नाम पर ठगी. फ्रॉड की लिस्ट में तरीके अनलिमिटेड हैं. इन ठगी में अपनी मेहनत की कमाई गंवाने वाले लोगों की परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब तमाम दौड़-धूप के बाद भी उनके पैसे वापस नहीं मिलते.
बैंकों की जटिल नौकरशाही और कोर्ट में महीनों-सालों चक्कर लगाने के बाद भी लोगों को रिफंड नहीं मिलता. Local Circles के एक सर्वे के मुताबिक भारत में फाइनेंशियल फ्रॉड्स के 70% पीड़ितों को उनके पैसे वापस नहीं मिलते. पिछले 3 वर्षों में फाइनेंशियल फ्रॉड का शिकार होने वाले केवल 23 फीसद परिवारों को उनके पैसे वापस मिले. सर्वे में ये भी पता चला कि 39 फीसद भारतीय परिवार साइबर फ्रॉड का शिकार हुए हैं. क्या कहते हैं एक्सपर्ट? साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट दिव्या तंवर का कहना है कि मनी को ट्रेस करना मुश्किल होता है. साथ ही लोग इन घटनाओं का पुख्ता सबूत नहीं रखते. हमारा ट्रेकिंग सिस्टम भी एडवांस नहीं है. इस वजह से रेजोल्यूशन में दिक्कतें आती हैं और लोगों के पैसे वापस दिलाना मुश्किल होता है. अगर किसी तरह मनी ट्रेस कर भी ली जाए तो अकाउंट होल्डर का नाम और असली ओनर का पता करना एक अलग चुनौती होती है. साथ ही ज्यादातर साइबर फ्रॉड लोकल पुलिस के अधिकार क्षेत्र के बाहर से अंजाम दिए जाते हैं, इसलिए दिक्कतें और बढ़ जाती हैं.
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कर्णवाल ने इसे सरकार और सिस्टम की नाकामी करार दिया. उनका कहना है कि जो Grievance cell है.. उसकी जिम्मेदारी है कि ऐसे मामलों का निपटारा करे. इसके बावजूद ज्यादातर मामले पेंडिंग रहते हैं.. ऐसे में पीड़ित के लिए ऑप्शन ये है कि संबंधित अदालत या जो भी Competent authority है, वहां एप्लीकेशन फाइल करें. जितनी जल्दी एप्लीकेशन फाइल करेंगे, रेजोल्यूशन के चांसेस उतने बढ़ जाएंगे.
क्या है उम्मीद? अब आखिर में सवाल ये उठता है कि क्या हम नाउम्मीद ही रहें. पैसे गए तो क्या कोई उपाय नहीं कि वो वापस मिल सके? इस लिहाज से गुजरात सीआईडी क्राइम ने एक राह दिखाई है जिसे पूरे देश में लागू किया जाए तो रेजोल्यूशन में आसानी होगी.. दरअसल गुजरात सीआईडी ने लाल फीताशाही को खत्म करने का रास्ता निकाला है. राज्य की सीआईडी ने सीआरपीसी की धारा 457 लागू कर साइबर अपराध के 3,904 पीड़ितों को 8.29 करोड़ रुपए वापस दिलाए हैं. पूरे राज्य में गठित विशेष लोक अदालतों में इन पीड़ितों से जुड़े मामलों की सुनवाई की गई.
गुजरात सीआईडी के मुताबिक आमतौर पर साइबर क्रिमिनल लोगों को ठगते हैं, देश के किसी दूरदराज के इलाके में खोले गए संदिग्ध बैंक खाते में पैसे ट्रांसफर करते हैं और फिर एटीएम के जरिए पैसे निकालते हैं. अगर पीड़ित तत्काल हेल्पलाइन नंबर 1930 पर फ्रॉड की जानकारी देता है तो पुलिस कार्रवाई करती है और पैसे जिस संदिग्ध अकाउंट में गए होते हैं, बैंक उस अकाउंट को फ्रीज कर देते हैं. बैंक से अमाउंट रिलीज कराने के लिए पीड़ित को अदालत के आदेश की जरूरत होती है.
सीआरपीसी की धारा 457 मजिस्ट्रेट को फ्रोजन अमाउंट को शर्त के साथ रिलीज करने का आदेश जारी करने का अधिकार देती है. इस स्थिति में पुलिस पीड़ित से बॉन्ड साइन कराती है जिसमें ये लिखा होता है कि अगर उनका क्लेम झूठा हुआ तो वो रिफंड किए जाने वाले अमाउंट का डेढ़ गुना भरने के लिए तैयार हैं. इसके बाद मजिस्ट्रेट फ्रोजन अमाउंट रिलीज करने का आदेश देते हैं.
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