डिजिटलीकरण आज के समय की आवश्यकता बन गई है. भुगतान के क्षेत्र में हम इसे अनुभव भी कर रहे है. पिछले कुछ वर्षों में भारतीयों ने सभी प्रकार के डिजिटल और ऑनलाइन भुगतानों को अपना लिया है. सरकार भी मुख्य रूप से दो कारणों के चलते डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित कर रही है. पहला- इससे नकद लेनदेन को कम करने में मदद मिलती है और दूसरा- वित्तीय लेनदेन की स्वच्छता और पारदर्शिता बढ़ाने के साथ ही ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के स्तर को बढ़ने में भी मदद मिलती है. लेकिन नई टेक्नोलॉजी के फायदों के साथ ही कुछ नए प्रतिबंध भी आते हैं. डिजिटल और ऑनलाइन भुगतान में सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं रही हैं.
हालांकि, प्रतिबंधों को कम करने की दिशा में सतर्कता के साथ कदम उठाए जा रहे हैं. प्रतिबंधों को कम करने का काम धीरे-धीरे और सुरक्षा उपायों में वृद्धि के साथ होना चाहिए. भारतीय रिजर्व बैंक का पिछले हफ्ते तत्काल भुगतान प्रणाली (IMPS) की सीमा को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया एक कदम है.
IMPS की लोकप्रियता इसलिए है, क्योंकि यह अत्यंत सुविधाजनक और निर्बाध है. इंटरनेट बैंकिंग, बैंक शाखाओं, मोबाइल ऐप, एटीएम, एसएमएस और आईवीआरएस जैसे चैनलों के माध्यम से इस सुविधा का लाभ उठाया जा सकता है. नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) की तरह, आईएमपीएस चौबीसों घंटे काम करता है, जो इन दिनों एक महत्वपूर्ण मानदंड है. देश में विभिन्न डिजिटल बैंक पैसे ट्रांसफर करने के लिए IMPS का उपयोग करते हैं और 2 लाख रुपये की सीमा काफी छोटी थी, जिससे बैंकों और अन्य संस्थानों / संस्थाओं को असुविधा होती थी.
साल 2021 में IMPS लेनदेन की संख्या NEFT लेनदेन से काफी अधिक हो गई है. IMPS लेन-देन को पूरा होने में लगने वाला समय काफी कम होता है. भारत जैसे मोबाइल प्रौद्योगिकी के प्रति जुनूनी देश के लिए, आईएमपीएस जैसी सुविधाएं आने वाले वर्षों में अधिक से अधिक लोकप्रिय हो जाएंगी. इस तरह के भुगतान के तरीकों में नियामक को भुगतान की सीमा और प्रतिबंधों में ढील देनी चाहिए. यदि अधिकारी सुरक्षा पहलू का ध्यान रख सकते हैं, तो कोई सीमा नहीं होनी चाहिए, जैसे चेक या ड्राफ्ट द्वारा भुगतान की कोई सीमा नहीं है.
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