दुनिया कितनी भी आगे बढ़ जाए, ऐसा लगता है कुछ देश कभी इस सच को अपना नहीं पाएंगे कि जिनपर कभी उन्होंने राज किया, आज वे तरक्की कर रहे हैं. उन्हें नीचा दिखाने और खुद से छोटा समझने की उनकी आदत छूट नहीं रही. दुख की बात है कि कोरोना जैसी महामारी भी उन्हें दुनिया को नए नजरिये से देखने में मदद नहीं कर पाई है.
यूनाइटेड किंगडम (UK) ने भारत के कोविड वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट (covid vaccination certificate) को लेकर जैसी टिप्पणियां की हैं, उनमें तानाशाही की झलक मिल रही है. यह वर्षों तक भारत जैसे देशों को लेकर बनी रही धारणा और नस्लभेद की आदत का नतीजा है.
UK ने कोविशील्ड (Covishield) को अपनी वैक्सीन लिस्ट से बाहर रखने पर आलोचनाओं का सामना करने के बाद उसे मंजूरी दे दी है. मगर इसका यह मतलब नहीं हुआ कि वहां जाने वाले भारतीयों को क्वारंटीन के नियमों से छुटकारा मिल जाएगा. यह खासकर स्टूडेंट्स के लिए परेशानी खड़ी करेगा. वहां जाने वालों के परिवारवालों की भी चिंताएं बढ़ेंगी.
कोरोना के प्रभाव से उभरने के लिए जब सभी देशों को एक साथ आना चाहिए, ऐसे वक्त में ब्रिटेन की सरकार का यह रवैया गलत संदेश भेज रहा है. किसी भी तरह के फैसले लेने के लिए इस समय सिर्फ विज्ञान को आधार बनाना चाहिए, न कि अपनी धारणाओं को.
कोविशील्ड दरअसल ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका (Oxford-Astrazeneca) की कोविड-19 वैक्सीन की एक ब्रांड है. इसने वायरस का प्रकोप घटाने में अहम भूमिका निभाई है. इसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर तैयार किया है. एक तरफ जहां ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी इंग्लैंड की पहचान है, वहीं एस्ट्राजेनेका ब्रिटिश-स्वीडिश MNC है.
यह दुख की बात है कि जब वही वैक्सीन भारत में तैयार की जा रही है, तो UK को लग रहा है कि वायरस के खिलाफ वह उतनी इफेक्टिव नहीं होगी.
अर्थव्यवस्थाओं में हुई उथल-पुथल से भविष्य को लेकर बनीं अनिश्चितताओं के बीच पश्चिमी देशों को खुद को ऊपर रखने की आदत को छोड़कर हालात सामान्य बनाने में हाथ बंटाना होगा. अगर UK जा रहा व्यक्ति पूरी तरह वैक्सीनेटेड है, तो उसके लिए वही कायदे-कानून लागू होने चाहिए जो वहां की टीका लगवा चुकी जनता के लिए बनाए गए हैं.
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