व्यक्ति के जीवन का आखिरी पढ़ाव उसकी उपलब्धियों की महिमा और सुनहरी यादों के साथ सुखपूर्वक बीतना चाहिए. लेकिन भारत में दुर्भाग्य से कई लोगों के लिए यह एक बहुत ही खतरनाक अवधि है, क्योंकि वे जीवन के अंतिम चरण को वित्तीय समस्याओं से निपटने की चिंता में ही बिताते हैं. अधिकांश वेतनभोगी भारतीय अपने पेशेवर जीवन को संतानों के लिए व्यक्तिगत जीवन में बलिदान कर देने व करों का भुगतान करने में बिताते हैं और एक ऐसे चरण में जब वे भावनात्मक और आर्थिक रूप से सबसे कमजोर होते हैं, तो उन्हें अकेले छोड़ दिया जाता है.
2021 मर्सर सीएफए ग्लोबल पेंशन इंडेक्स सर्वे ने देश में पेंशन प्रणाली की एक दुखभरी तस्वीर पेश की है. इसने मौजूदा सिस्टम में सुधार की व्यापक आवश्यकता को रेखांकित किया है. सर्वे में बताया गया कि भारतीय पेंशन प्रणाली को 43 प्रणालियों में 40वें स्थान पर रखा गया है. दूसरे शब्दों में देश में पेंशन प्रणाली वरिष्ठ नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है. यह आकलन दर्शाता है कि एक राष्ट्र के रूप में हम कितने पिछड़े हुए हैं और कैसे हम आबादी के उस वर्ग की जरूरतों को स्वीकार करने और उन्हें पूरा करने में विफल रहे हैं, जिसने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
एक स्थायी मासिक पेंशन केवल सरकारी कर्मचारियों के पास ही नहीं होनी चाहिए. सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए कि पेंशन कवरेज तीव्र गति से बढ़े, ताकि सामाजिक सुरक्षा कुछ नागरिकों के लिए विशेषाधिकार न बने. यह सुनिश्चित करने के लिए कि क्या ऐसी प्रणाली लागू की जा सकती है, यह वस्तुओं और सेवाओं की एक बड़ी श्रृंखला की अर्थव्यवस्था में कुल मांग को बढ़ाने में भी मदद करेगी.
जिनके पास सरकारी नौकरी नहीं है उनके लिए केवल एक ही पेंशन उपलब्ध है, जो एक व्यक्ति द्वारा जीवन भर अपने मितव्ययता बरतकर की गई बचत है. ऐसे देश में जहां स्थिर नौकरियां काफी कम हैं, यह विश्वास करना एक भ्रम होगा कि व्यक्ति सेवानिवृत्ति के वर्षों के लिए बहुत पहले से बचत करना शुरू कर देंगे. मानव स्वभाव परिस्थितियों से निर्मित होता है. इसलिए, सरकार पर एक ऐसा ढांचा तैयार करने की जिम्मेदारी है, जो नागरिकों को सेवानिवृत्ति के बाद तनाव मुक्त जीवन जीने में मदद करे.
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