गुजरे दो-ढाई साल से गर्दिश के दौर से गुजर रहे ऑटो सेक्टर को क्या सुबह की रोशनी नजर आने लगी है? ऑटो कंपनियों के तिमाही नतीजे देखें तो एकबारगी ऐसा लगता है कि इस सेक्टर का सबसे बुरा दौर बीत चुका है. मौजूदा फिस्कल यानी 2022-23 की पहली तिमाही में लिस्टेड टू-व्हीलर और कार कंपनियों ने ठीक-ठाक प्रॉफिट ग्रोथ दिखाई है.
मसलन, देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति की बात करें तो सालाना आधार पर इसका मुनाफा 129 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है. टूव्हीलर सेगमेंट में टीवीएस ने 506 फीसदी प्रॉफिट ग्रोथ दर्ज की है. हालांकि, फोर-व्हीलर में दूसरे पायदान पर आने के लिए बेकरार टाटा मोटर्स के नतीजे उतने अच्छे नहीं रहे हैं.
लगे हाथ बीती तिमाही में इन लिस्टेड ऑटो कंपनियों के सेल्स के नंबर भी देख लेते हैं. सबसे पहले देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति की बात. तो मारुति की नेट सेल्स इस दौरान 50.5 फीसदी बढ़कर 25286 करोड़ रही है. टाटा मोटर्स की सेल्स 8.3 फीसदी बढ़ी है. इसी तरह से बजाज ऑटो की सेल्स 8.4 फीसदी बढ़ी है.
लेकिन, दिमाग में बात ये आती है कि आखिर ऐसा क्या बदल गया कि ऑटो कंपनियां एक दफा फिर से फर्राटा भरने के मोड में आ गईं? इसकी एक वजह गुजरी तिमाही में कमोडिटीज की कीमतों में आई नरमी रही है. इससे ऑटो कंपनियों को मार्जिन के मोर्चे पर राहत मिली है. सेमीकंडक्टर की कमी का दर्द भी इस दौरान कुछ कम हुआ है. ऑटो कंपनियों के लिए सबसे अच्छी बात ये रही है कि गाड़ियों की डिमांड लगातार मजबूत बनी रही है. लोग सालभर की वेटिंग के बावजूद गाड़ी खरीदने से पीछे नहीं हट रहे हैं.
लोगों में गाड़ियां खरीदने का जुनून बना हुआ है और हाल में जब महिंद्रा ने स्कॉर्पियो एन लॉन्च की तो आधे घंटे में ही 1 लाख गाड़ियां बुक हो गईं. मारुति की ग्रैंड विटारा और ब्रेजा की लॉन्चिंग भी ऐसी ही हिट हुई है. हां, टूव्हीलर कंपनियों के मामले में ऐसा नहीं है. वजह ये है कि मोटरसाइकिलों और स्कूटरों की ज्यादातर डिमांड गांव-देहातों और छोटे शहरों से आती है.
ग्रामीण भारत एक डिस्ट्रेस के दौर से गुजर रहा है और दुपहिया बिक्री इसी वजह से उठ नहीं पा रही है. मसलन, बजाज ऑटो के नतीजों को देख लीजिए. पहली तिमाही में बजाज के घरेलू टू-व्हीलर वॉल्यूम में 40 फीसदी की बड़ी गिरावट रही है. बजाज ऑटो का कुल सेल्स वॉल्यूम भी इस दौरान 10,06,014 से 7 फीसदी घटकर 9,33,646 यूनिट रहा है. तो क्या इन नतीजों को देखकर ये नतीजा निकाला जा सकता है कि ऑटो सेक्टर के सब दर्द दूर हो गए हैं?
सवाल ये भी जेहन में आता है कि आने वाला वक्त इस सेक्टर के लिए कैसा रहने वाला है? इन सवालों के जवाब कुछ फैक्टर्स में छिपे हुए हैं. जैसे कि, चिप शॉर्टेज की दिक्कत अभी भी पूरे सेक्टर के लिए मुसीबत बनी हुई है. अब मारुति की ही बात कर लीजिए, चिप की कमी से मारुति करीब 51,000 गाड़ियों का उत्पादन नहीं कर पाई. गुजरी तिमाही के अंत तक करीब 2.8 लाख गाड़ियों के ऑर्डर बकाया थे. यही नहीं मारुति के अच्छे रिजल्ट्स के पीछे लो बेस का भी बड़ा हाथ रहा है.
और ये हाल अकेले मारुति का नहीं है. दूसरी ऑटो कंपनियां भी कमोबेश ऐसे ही हालात का सामना कर रही हैं. यानी, एक तिमाही के नतीजे इस सेक्टर की रात की सुबह होने की निशानी कतई नहीं कहे जा सकते. तो अब अगली और ज्यादा अहम बात ये आती है कि अब आगे क्या होगा? यानी ऑटो सेक्टर का आउटलुक कैसा है? मोटे तौर पर हालात रिकवरी की ओर इशारा कर रहे हैं.
मसलन, जुलाई में ऑटो कंपनियों ने मजबूत बिक्री के आंकड़े दिए हैं. कंपनियां ताबड़तोड़ मॉडल लॉन्च कर रही हैं. दूसरी ओर, चिप शॉर्टेज के हालात भी सुधर रहे हैं. और बड़ी बात ये है कि अब तक मॉनसून नॉर्मल रहा है और इससे गांव-देहात में अच्छी डिमांड की उम्मीद पैदा हो रही है. हालांकि, मंदी का डर एक्सपोर्ट मार्केट्स में डिमांड को घटा सकता है.
बात ये भी कर लेते हैं कि निवेशकों के लिए इसमें क्या है? माने क्या ऑटो सेक्टर के शेयरों में पैसा बनेगा? तो बात ऐसी है कि ब्रोकर्स भी ऑटो सेक्टर में आ रही रौनक से खुश हैं और इन स्टॉक्स के लिए अपनी रेटिंग को रिवाइज कर रहे हैं. मसलन, जेफरीज ने मारुति के लिए 10,250 रुपए के टारगेट के साथ बाय रेटिंग दी है. ब्रोकर्स टीवीएस मोटर्स पर भी बुलिश बने हुए हैं.
हाल के दौर में निवेशकों की पसंद बना टाटा मोटर्स का स्टॉक ब्रोकर्स भी पहली पसंद बना हुआ है. इसके लिए जेफरीज ने 540 रुपए का टारगेट दिया है. कुल मिलाकर ऑटो सेक्टर रिकवरी के दौर में एंट्री कर चुका है और आने वाले वक्त में अगर महंगाई पर कंट्रोल रहा और चिप की दिक्कत कम हुई तो ये सेक्टर फिर से तेजी की गाड़ी पर सवार हो सकता है.
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