चेक बाउंस (Cheque Bounce) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि दिवालिया प्रक्रिया (Insolvency Proceedings) से गुजर रही कंपनियों के खिलाफ न तो चेक बाउंस का मामला शुरू किया जा सकता है और न ही इसे जारी रखा जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि ऐसी कंपनियों को इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के प्रावधान के तहत संरक्षण मिला हुआ है. इसके साथ ही कोर्ट ने इन कंपनियों के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा दी.
इन्हें नहीं मिली राहत- हालांकि, शीर्ष अदालत ने चेक बाउंस मामले में न्यायिक प्रक्रिया पर रोक का लाभ डायरेक्टर्स या चेक पर हस्ताक्षर करने वालों को नहीं दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में उनके खिलाफ आपराधिक मामला जारी रहेगा.
IBC के तहत मिली है राहत न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष यह कानूनी मुद्दा आया कि क्या नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138/141 (चेक बाउंस मामला) के तहत प्रक्रिया जारी रखने को IBC की धारा 14 के रोक के प्रावधान के तहत संरक्षण मिला हुआ है. आईबीसी के तहत किसी कंपनी के खिलाफ कॉरपोरेट दिवाला प्रक्रिया शुरू होते ही उसे धारा 14 के तहत सांविधिक संरक्षण मिल जाता है. साथ ही उसके खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया भी रुक जाती है.
पीठ में न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति के एम जोसफ भी शामिल थे. पीठ ने बंबई और कोलकाता हाई कोर्ट के उन फैसलों पर असहमति जताई जिनमें यह व्यवस्था दी गई थी कि आईबीसी के तहत दिवाला प्रक्रिया वाली कंपनियों के खिलाफ चेक बाउंस का मामला जारी रखा जा सकता है.
तेजी से बढ़ रहे चेक बाउंस के मामले बता दें कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामले में कमी लाने के इरादे से केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या वह ऐसे मामलों से निपटने के लिए अतिरिक्त कोर्ट गठित कर सकती है. कोर्ट ने चेक बाउंस के मामले बढ़कर 35 लाख पहुंचने के बीच केंद्र से यह पूछा है.
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