हर साल भारत से लाखों की तादाद में स्टूडेंट्स पढ़ाई करने विदेश जाते हैं. लेकिन, पिछले साल कोविड-19 फैलने के बाद ट्रैवल पर पाबंदियां लगा दी गई और साथ ही विश्विद्यालयों में भी पढ़ाई को ऑनलाइन कराया जाने लगा. नई परिस्थितियों ने विदेश जाकर पढ़ने और वहां पर जॉब करने की सोच रहे भारतीय छात्रों को मुश्किल में डाल दिया. हालांकि, कोविड-19 की वैक्सीन आने और पाबंदियों में ढील दिए जाने के बाद भारतीय छात्रों में एक बार फिर से विदेश जाकर पढ़ने का उत्साह पैदा हो रहा है और बड़ी तादाद में छात्र इसके लिए आवेदन कर रहे हैं. इस साल बड़ी तादाद में छात्र विदेश जाने की तैयारी में हैं. अमरीकी विश्वविद्यालयों में GRE की जरूरत खत्म होने से छात्र अमरीका जाने को तरजीह दे रहे हैं. इसके अलावा, कुछ देशों में अभी भी ट्रैवल की पाबंदियों के चलते स्टूडेंट्स यूएस, कनाडा और यूके को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं.
एक्सपर्ट्स इस साल विदेश में पढ़ाई के संबंध में कुछ नए ट्रेंड्स की ओर इशारा कर रहे हैं.
कोविड-19 के बाद बाहर जाने वालों की बढ़ रही संख्या ज्यादातर एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोविड-19 की ट्रैवल पाबंदियां कम होने और वैक्सीन आने के बाद से विदेश जाकर पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की तादाद में इस साल उछाल आ रहा है.
WIZIUS करियर्स के ओनर नवीन शर्मा कहते हैं, “कोविड-19 की पाबंदिया कम होने और वैक्सीन आने के बाद से अब बाहर जाने के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या बढ़ी है. हमें इस साल विदेश पढ़ने जाने वालों की संख्या में 30-40 फीसदी की बढ़ोतरी दिख रही है.”
अमरीका पढ़ने जाना चाहते हैं छात्र अमरीका में पढ़ाई के लिए जाने वाले बच्चों को एक बड़ी राहत इस साल मिली है. अमरीका की ज्यादातर यूनिवर्सिटीज ने एडमिशन के लिए GRE या GMAT की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है.
मुंबई की इंपीरियल एजूकेशन के लीड काउंसलर अक्षय भंडारी कहते हैं, “2019 तक सभी यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के लिए GRE/GMAT स्कोर जरूरी था. जितना अच्छा ये स्कोर होता है उतनी ही अच्छी यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिलने के आसार बढ़ जाते हैं. इस साल के लिए इस जरूरत से छूट दे दी गई है.”
अब तक ऐसा होता था कि जो बच्चे GRE दिए बाहर पढ़ने जाना चाहते थे वे यूएस को छोड़कर दूसरे देश चले जाते थे. लेकिन, इस साल ऐसे बच्चे भी यूएस जा रहे हैं.
कोविड के बाद से यूएस की यूनिवर्सिटीज एक हाइब्रिड पैटर्न पर चल रही हैं. इसके तहत एक सेमेस्टर में आपके एक-दो विषय ऑन-कैंपस होंगे, जबकि एक-दो सब्जेक्ट ऑनलाइन होंगे. हर साल 3-4 लाख स्टूडेंट्स विदेश पढ़ने जाते हैं. इसमें से 1.5 से 2 लाख बच्चे यूएस जाते हैं. भंडारी कहते हैं, “कोविड-19 के दौरान ये संख्या बेहद गिर गई और पिछले साल करीब 50-60,000 स्टूडेंट्स ही बाहर पढ़ने जा पाए हैं.”
अक्टूबर-नवंबर से शुरू हो जाती है प्रक्रिया ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सीमाएं अभी भी बंद हैं. ऐसे में इन देशों की यूनिवर्सिटीज स्टूडेंट्स को दो ऑफर दे रही हैं. पहला या तो स्टूडेंट्स ऑनलाइन कोर्स चुनें या फिर एक सेशन के लिए एडमिशन को टाल दें.
भंडारी कहते हैं, “भारत के ज्यादातर छात्र यूएस जाते हैं और वहां पर सबकुछ योजना के हिसाब से चल रहा है. यूएस में बच्चे अगस्त या सितंबर में जाएंगे और उसके लिए स्टूडेंट्स के वीजा इस वक्त चल रहे हैं.”
अमरीका में पढ़ाई के लिए जाने वाले बच्चों को एक साल पहले से इसकी प्रक्रिया शुरू करनी होती है. मसलन अगर आपको 2021 में कोर्स शुरू करना है तो 2020 के अक्टूबर-नवंबर से इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. भारत से ज्यादातर स्टूडेंट्स यूएस पढ़ाई करने जाते हैं. इन स्टूडेंट्स को अब वीजा मिलने की तैयारी चल रही है. और अगस्त-सितंबर से इनकी क्लासेज शुरू हो जाएंगी, जबकि बच्चे जुलाई अंत तक यूएस पहुंच जाएंगे.
एक्सपर्ट बताते हैं कि अमरीका में एक नियम है कि आप क्लास शुरू होने से एक महीने से पहले यूएस नहीं जा सकते हैं.
भंडारी कहते हैं कि अमरीका में पढ़ने जाने वाले ज्यादातर छात्र यानी करीब 80 फीसदी मास्टर्स करने जाते हैं, जबकि 10 फीसदी पीएचडी करने के लिए वहां पहुंचते हैं. बकाया 10 फीसदी बच्चे ग्रेजुएशन और दूसरे कोर्सेज के लिए वहां जाते हैं.
ब्रेग्जिट के बाद ब्रिटेन में भी बढ़ी दिलचस्पी एक और ट्रेंड यह आ रह है कि यूएस के अलावा बहुत सारे स्टूडेंट्स अब यूके भी जाने पर जोर दे रहे हैं. भंडारी कहते हैं कि यूके में ब्रेग्जिट यानी यूरोपीय संघ से बाहर निकल जाने के बाद से वहां पर स्टूडेंट्स जा रहे हैं. इसके अलावा वहां एक बदलाव ये भी हुआ है कि आप कोर्स करने के बाद वहां पर दो साल तक रुक सकते हैं और इस दौरान छात्र वहां इंटर्नशिप या नौकरी कर सकता है. पहले ये अवधि महज 2 महीने की थी. इसके अलावा, यूएस में ज्यादातर कोर्स दो साल के हैं, जबकि यूके में ज्यादातर कोर्स एक साल के हैं, ऐसे में यह सस्ता भी पड़ता है. यूके में टॉप यूनिवर्सिटीज को छोड़ दें तो वहां कोई यूनिवर्सिटी GRE या GMAT का स्कोर नहीं लेती है. भंडारी कहते हैं कि पिछले वर्षों में महज 18,000-20,000 छात्र ही वहां जाते थे, लेकिन इस साल ये आंकड़ा काफी बढ़ जाएगा.
कनाडा पर भी बढ़ रहा फोकस शर्मा कहते हैं कि यूएस जाने वाले छात्र इस बात को लेकर थोड़े से चिंतित हैं कि वहां का उन्हें वीजा मिलेगा या नहीं. वे कहते हैं कि इसकी बजाय कनाडा दो साल के कोर्स और तीन साल के इंटर्नशिप और नौकरी करने का वीजा एकसाथ दे देता है. छात्र इस वजह से कनाडा को भी तरजीह दे रहे हैं.
विदेश में पढ़ाई की कंसल्टेंसी मुहैया कराने वाले मान्या ग्रुप के रीजनल हेड आदित्य जैन कहते हैं कि ज्यादातर बच्चे केवल ऑनलाइन क्लासेज के लिए ही विदेशी यूनिवर्सिटी में एडमिशन नहीं लेना चाहते हैं. बच्चे विदेश इसलिए जाना चाहते हैं ताकि वे वहां पर कैंपस का अनुभव कर सकें और बाद में वहीं पर नौकरी भी हासिल कर सकें.
जैन कहते हैं कि अमरीका भी मोटे तौर पर ऐसा देश है जहां पर फिजिकल क्लासेज को शुरू किया गया है. इस वजह से बच्चे अमरीका जाने पर फोकस कर रहे हैं.
किन चीजों का रखें ध्यान
एक्सपर्ट कहते हैं कि विदेश पढ़ाई करने की सोच रहे छात्रों को कुछ चीजों का ध्यान रखना चाहिए.
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