प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने रविवार को कहा कि छोटे-छोटे शहरों में भी अब स्टार्टअप को लेकर युवाओं में रुझान पैदा हो रहा है और इसे लेकर देश में एक संस्कृति का विस्तार हो रहा है जिसे वह उज्ज्वल भविष्य के संकेत के रूप में देखते हैं. आकाशवाणी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘‘मन की बात’’ की 80वीं कड़ी के जरिए अपने विचार साझा करते हुए प्रधानमंत्री (Prime Minister Narendra Modi) ने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलने के कदम को युवा पीढ़ी ने हाथों-हाथ लिया जिसका लाभ उठाने के लिए छात्र व नौजवान बढ़-चढ़कर आगे आए हैं.
उन्होंने भरोसा जताया कि आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे उपग्रहों की होगी, जिन पर देश के युवाओं ने काम किया होगा. ‘‘मन की बात’’ कार्यक्रम की इस कड़ी में प्रधानमंत्री ने भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा और संस्कृत भाषा को लेकर जागरुकता बढ़ाने के प्रयासों सहित कुछ अन्य विषयों पर भी चर्चा की.
उन्होंने दावा किया कि आज देश के युवा का मन बदल चुका है और वह घिसे-पिटे पुराने तौर-तरीकों से कुछ नया करना चाहता है. उन्होंने कहा कि आज का युवा बने-बनाए रास्तों पर चलना नहीं चाहता है बल्कि वह नए रास्ते बनाना चाहता है.
अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी भागीदारी के लिए खोलने के कदम का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘देखते ही देखते युवा पीढ़ी ने इस मौके को पकड़ लिया और इसका लाभ उठाने के लिए कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्रों में काम करने वाले नौजवान बढ़-चढ़ कर आगे आए हैं. मुझे पक्का भरोसा है कि आने वाले दिनों में बहुत बड़ी संख्या ऐसे उपग्रहों की होगी, जिन पर हमारे युवाओं ने, हमारे छात्रों ने, हमारे कॉलेजों ने, हमारे विश्वविद्यालयों ने, प्रयोगशालाओं में काम करने वाले छात्रों ने काम किया होगा.’’
उन्होंने कहा कि इसी तरह आज जहां भी देखो और किसी भी परिवार में देखो, नौजवान अपनी पारिवारिक परम्पराओं से हटकर कहता है कि वह तो स्टार्टअप आरंभ करेगा. उन्होंने कहा, ‘‘खतरा मोल लेने के लिए उसका मन उछल रहा है। आज छोटे-छोटे शहरों में भी स्टार्टअप संस्कृति का विस्तार हो रहा है और मैं उसमें उज्ज्वल भविष्य के संकेत देख रहा हूं.’’
प्रधानमंत्री ने खिलौना बाजार में संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अब देश के युवा इस क्षेत्र में भी आगे आ रहे हैं और नए-नए प्रयोग भी कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि दुनिया में खिलौनों का बाजार 6-7 लाख करोड़ रुपये का है और इसमें आज भारत का हिस्सा बहुत कम है.
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन खिलौने कैसे बनाना है? खिलौनों की विविधता क्या हो? खिलौनों में प्रौद्योगिकी क्या हो? बल मनोविज्ञान के अनुरूप खिलौने कैसे हों? आज हमारे देश का युवा उसकी ओर ध्यान केन्द्रित कर रहा है.’’
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