Refurbished Mobile Phones: रिफर्बिश्ड फोन की स्थानीय मांग नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक सप्लाई-चेन की बाधाओं के कारण नए हैंडसेट और लैपटॉप की उपलब्धता में देरी और महामारी के कारण कम डिस्पोजेबल नकदी की वजह से ऐसा हुआ है. मार्केट ट्रैकर्स ने 2019 की तुलना में 2021 में ऐसे उपकरणों की बिक्री लगभग दोगुनी होने का अनुमान लगाया है.
वेब मार्केटप्लेस यंत्र के सीईओ जयंत झा ने ईटी को बताया कि 4,000-6,000 रुपये के रिफर्बिश्ड फोन 30 मिनट से भी कम समय में स्टॉक आउट हो जाते हैं.
झा ने कहा, ‘रीफर्बिश्ड स्मार्टफोन की उछाल लैपटॉप की तुलना में अधिक है और पिछले एक साल में हैंडसेट पर निर्भरता कई गुना बढ़ गई है. हमारा लक्ष्य अगले 12-18 महीनों में 750 टाउन/सिटी तक पहुंचना है. फिलहाल ये संख्या 450 है.’
कोरोना महामारी ने ऑनलाइन क्लासेज और वर्क फ्रॉम होने को काफी बढ़ावा दिया है, जिससे स्मार्टफोन पर निर्भरता काफी ज्यादा बढ़ गई है.
ऐसी निर्भरता पहले कभी नहीं देखी गई थी. पोर्ट बंद होने और चिपसेट की कमी जैसे लॉजिस्टिक इश्यू के कारण कई ग्राहक नए उपकरणों या यहां तक कि एक महंगे लैपटॉप की प्रतीक्षा करने के बजाय रिफर्बिश्ड फोन खरीदने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
रिसर्च फर्म आईडीसी के अनुमानों के अनुसार, 2019 में बेचे गए 20-30 मिलियन रिफर्बिश्ड मोबाइल की तुलना में, 2021 में लगभग 40-48 मिलियन यूनिट बेचे जाने की संभावना है. रीफर्बिश्ड स्मार्टफोन किसी और के स्वामित्व वाले हैंडसेट होते हैं.
ऐसे फोन को रिस्टोर किया जाता है और वर्किंग कंडीशन में रिसेलर इसे बेचते हैं. नए फोन की तरह ये भी वारंटी और पेमेंट ऑप्शन के साथ आते हैं.
रीफर्बिश्ड फोन बेचने वाली कंपनियां ऐसे फोन का क्वालिटी टेस्ट करती है. इसमें बैटरी बदलने से लेकर क्रैक स्क्रीन को बदलना शामिल है.
रिफर्बिश्ड फोन को आमतौर पर दिखने के आधार पर ग्रेड किया जाता है. ज्यादातर रिफर्बिश्ड फोन बड़े नाम वाली कंपनियां जैसे Apple और Samsung के होते हैं.
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