गेहूं और चावल के बाद अब महंगी होती दालें सरकार के लिए सिरदर्द बन रही हैं. खरीफ दलहन की खेती में आई कमी से उपज घटने की आशंका बढ़ गई है और यही आशंका दालों की महंगाई को बढ़ा रही है. खासकर अरहर उड़द की कीमतों में जोरदार उछाल आया है. महीनेभर में अरहर का भाव करीब 17 फीसद और उड़द दाल का भाव 10 फीसद से ज्यादा बढ़ा है.
खरीफ दलहन की खेती को देखें तो रकबा 5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा पिछड़ गया है. अरहर और उड़द की खेती में ही ज्यादा गिरावट आई है. अरहर का रकबा साढ़े 5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा पिछड़ा हुआ है और उड़द का रकबा भी करीब पौने 2 लाख हेक्टेयर पीछे है.
दलहन की खेती पिछड़ने के अलावा कई बड़े उत्पादक राज्यों में हुई बहुत ज्यादा बरसात की वजह से फसल को नुकसान की आशंका भी है. सरकार को डर है कि कम खेती और फसल को नुकसान की आशंका से दालों की कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा जो कीमतों को और हवा देगा. इसी वजह से सरकार ने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि अरहर कारोबारियों के स्टॉक की जांच करें और स्टॉक की जानकारी हर हफ्ते उपभोक्ता मंत्रालय को देते रहें.
हालांकि सरकार का कहना है कि दाल कीमतें ज्यादा बढ़ीं तो वह अपने स्टॉक में रखे 38 लाख टन दलहन को खुले बाजार में उतार सकती है लेकिन सरकार अपने रखे दलहन का पूरा स्टॉक भी अगर बाजार में उतार दे तो भी शायद अरहर और उड़द की कीमतों पर लगाम न लग पाए क्योंकि सरकारी स्टॉक में जो दलहन रखा हुआ है. उसमें अधिकतर हिस्सा चने का है और चने का भाव पहले ही नियंत्रण में है.
ऊपर से भारतीय दालों की एक्सपोर्ट मांग भी लगातार बढ़ रही है. इस साल अप्रैल और मई के दौरान दलहन के निर्यात में 5 गुना से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है. 1.9 लाख टन दालों का एक्सपोर्ट हुआ है. दालों का यह बढ़ा हुआ निर्यात भी कीमतों को हवा दे रहा है. हालांकि भारत से दलहन निर्यात के मुकाबले आयात अधिक होता है और जिन देशों से भारत दालों का आयात करता है. वहां पर इस साल अच्छी फसल है. कनाडा में तो सूखे मटर और मसूर का उत्पादन 50 फीसद तक बढ़ने का अनुमान है. देश में कीमतें ज्यादा बढ़ीं तो विदेशों की अधिक उपज आयात को बढ़ाने में मददगार होगी और यह बढ़ा हुआ आयात कीमतों में ज्यादा बढ़ोतरी को रोक सकता है.