एक प्रभावी ग्राहक सेवा तंत्र में ग्राहकों की शिकायतों के समाधान का उचित स्ट्रक्चर होना चाहिए. इसमें कई लेयर्स होनी चाहिए और ग्राहकों की शिकायतों को फिल्टर किया जाना चाहिए. वित्तीय सेवाओं की दुनिया में, लोकपाल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इससे ग्राहकों की शिकायतें उचित निपटान की उम्मीद कर सकती हैं.
पिछले हफ्ते भारतीय रिजर्व बैंक ने घोषणा की है कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के ग्राहक निवारण तंत्र को मजबूत करने के लिए एनबीएफसी में आंतरिक लोकपाल की एक प्रणाली शुरू की जाएगी. यह एक स्वागत योग्य कदम है. बैंकों ने हमेशा वित्तीय सेवा ढांचे में केंद्रीय भूमिका निभाई है, लेकिन एनबीएफसी का प्रभाव भी कम नहीं है.
भारत में सैकड़ों एनबीएफसी हैं, जो आबादी के एक बड़े हिस्से की महत्वपूर्ण वित्तीय जरूरतों को पूरा करती हैं. यो लोगों को होम लोन, ऑटो लोन, गोल्ड लोन, पर्सलन लोन और व्यवसायों के लिए माइक्रोफाइनेंस व एमएसएमई लोन वितरित करती हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि एनबीएफसी में बहुत सारी ग्राहक शिकायतें आती हैं और एक लोकपाल की उपस्थिति ग्राहक शिकायत निवारण तंत्र की मदद करेगी.
आंतरिक लोकपाल सीधे जनता से शिकायतों को नहीं संभालते हैं. वे आम तौर पर उन शिकायतों से निपटते हैं, जिन्हें आंतरिक शिकायत निवारण प्रणाली द्वारा पहले ही संबोधित किया जा चुका है, लेकिन उससे संतुष्ट नहीं है. चूंकि अधिकांश शिकायतें सीधे तौर पर पैसे के मामलों से संबंधित हैं, इसलिए ग्राहक शिकायत निवारण में देरी सहन नहीं कर पाते हैं. इस साल जनवरी तक, आरबीआई के साथ 9,000 से अधिक एनबीएफसी पंजीकृत थीं. अब आप समझ सकते हैं कि इनके ग्राहकों की करोड़ों में होगी.
जहां तक बैंकों के लिए लोकपाल के मॉडल की बात है, तो लोकपाल एक कार्यरत या सेवानिवृत्त अधिकारी होना चाहिए, जो उप महाप्रबंधक के पद से नीचे का न हो. उसे बैंकिंग विनियमन, पर्यवेक्षण, निपटान और भुगतान प्रणाली जैसे क्षेत्रों में काम करने का न्यूनतम सात साल का अनुभव होना चाहिए. बैंकिंग नियामक एनबीएफसी के लिए आंतरिक लोकपाल योजना के लिए अलग से अधिसूचना जारी करता है. लेकिन सिर्फ नोटिफिकेशन ही काफी नहीं है. बेहतर ग्राहक अनुभव के लिए इसे अक्षरश: लागू किया जाना चाहिए.
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