NSG Membership: भारत ने एक बड़े कदम के तौर पर ये मांग की है कि अगर उसे न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) में शामिल नहीं किया जाता है तो उसके लिए अपने क्लाइमेट गोल्स को हासिल करने में मुश्किल हो सकती है. भारत ने कहा है कि टेक्नोलॉजी को कोयले की जगह न्यूक्लियर पर शिफ्ट करने के लिए उसे बड़े पैमाने पर पूंजी की जरूरत होगी तभी न्यूक्लियर पावर प्लांट्स लगाए जा सकेंगे जो कि मौजूदा और भविष्य की बिजली की जरूरतों को पूरा कर सकेंगे.
आसान शब्दों में कहा जाए तो प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए भारत को अपने कोल बेस्ड पावर प्लांट्स को बंद करना होगा और न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने होंगे.
इसके लिए टेक्नोलॉजी और दूसरे अंतरराष्ट्रीय सपोर्ट के लिए भारत का NSG का मेंबर बनना जरूरी है. हालांकि, चीन इसमें लगातार अड़ंगा लगाता आ रहा है.
यहां समझने की एक बात ये भी है कि अगर भारत NSG का मेंबर बनता है और क्लाइमेट के अपने गोल्स पूरे करता है तो इसका आम लोगों की जिंदगियों, स्वास्थ्य और उनके बटुए पर क्या असर पड़ सकता है.
इसके लिए ये जानना जरूरी है कि लोगों के स्वास्थ्य पर प्रदूषण के क्या बुरे असर होते हैं और इसके लिए लोगों को कितना पैसा खर्च करना पड़ता है?
यानी प्रदूषण का आर्थिक और स्वास्थ्य पर असर जानना यहां जरूरी है.
ऊंचे वायु प्रदूषण का कई तरह से स्वास्थ्य पर असर हो सकता है. इससे रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, हार्ट डिसीज और लंग कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. प्रदूषित वायु वाले माहौल में चाहे आप कम वक्त के लिए रहें या ज्यादा वक्त के लिए आपके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ना तय है. खासतौर पर पहले से बीमार लोगों, बच्चों और बुजुर्गों के लिए ये ज्यादा जोखिमभरा होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस आंकड़े से आप प्रदूषण की गंभीरता को समझ सकते हैं. WHO ने कहा है कि दुनियाभर में हर 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं.
भारत के लिए ये समस्या और बड़ी हो जाती है क्योंकि भारत के ज्यादातर शहर और खासतौर पर महानगर भारी तौर पर प्रदूषण की जद में हैं.
लेंसेंट में छपी दिसंबर 2020 की एक रिपोर्ट बताती है कि 2019 में भारत में 17 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हुई जो कि देश में हुई कुल मौतों का 18% है.
आर्थिक नजरिये से देखें तो वायु प्रदूषण के चलते असमय हुई मौतों और बीमारियों की वजह से 2019 में उत्पादन को हुआ नुकसान जीडीपी का 1.4% था. रुपयों में इसे देखें तो ये रकम 2,60,000 करोड़ रुपये बैठती है.
यानी 2019 में वायु प्रदूषण के चलते भारत की जीडीपी को 2.6 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
IIT, दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉसफेरिक साइंसेज के प्रोफेसर और लेंसेंट में छपी रिपोर्ट के लेखक सागनिक डे कहते हैं कि क्लीन एनर्जी पर शिफ्ट करने से स्वास्थ्य और आर्थिक दोनों तरह के फायदे होंगे.
डे कहते हैं, “इससे एक तो वायु प्रदूषण कम होगा साथ ही इस वजह से होने वाली लोगों की मौतें भी कम होंगी. भारत में न सिर्फ शहर बल्कि गांव भी प्रदूषण का शिकार हैं और इससे तमाम बीमारियों का खतरा पैदा हो रहा है.”
टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी एंड एनवायरमेंट की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कामना सचदेवा कहती हैं, NSG के लिए हमारा स्टैंड कार्बन उत्सजर्न को लेकर है. हमें रिन्यूएबल एनर्जी में अपना शेयर बढ़ाना है. कार्बन उत्सजर्न तभी कम होगा जब कोयले का इस्तेमाल कम होगा.
सचदेवा बताती हैं कि अभी भारत में कुल बिजली उत्पादन में न्यूक्लियर पावर की हिस्सेदारी 2-2.5 फीसदी के बीच है. देश में फिलहाल 7 न्यूक्लियर पावर प्लांट हैं. न्यूक्लियर पावर प्लांट के लिए यूरेनियम की जरूरत होती है और NSG का सदस्य बनने पर भारत को ये आसानी से उपलब्ध हो सकेगा.
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