कभी विदेशों में सैर तो कभी महंगे कपड़े तो कभी होटलों में शानदार पार्टियां. कुछ ऐसे ही उपहार दवा कंपनियां डॉक्टरों को देती हैं. इसलिए कि डॉक्टर उनकी दवा को प्रमोट करे जिससे कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सके. डॉक्टर और दवा कंपनियों की तो जेब भरती है, लेकिन मरीजों को महंगी दवा खरीदने पर मजबूर होना पड़ता था. हाल ही में चर्चित डोलो प्रकरण काफी सुर्खियां बटोर रहा है. जिसमें डॉक्टरों को करीब एक हजार करोड़ के उपहार बांटे गए. लेकिन अब मुफ्त उपहारों के दिन लदने वाले हैं. सरकार डॉक्टरों को महंगे उपहार देने से रोकने के लिए नियमों को सख्त करने जा रही है.
स्वास्थ्य मंत्रालय, फार्मास्यूटिकल्स डिपार्टमेंट, नेशनल मेडिकल कमीशन और अन्य विभागों के बीच यह तय किया जा रहा है कि फार्मा कंपनियों से उपहार के रूप में किसी तरह का सामान लिया जा सकता है. उदाहरण के लिए, वे डॉक्टरों को कंपनी के ब्रांडेड पेन जैसे सस्ते उपहार स्वीकार करने की अनुमति दे सकते हैं, लेकिन होटल में ठहरने पर प्रतिबंध लगा सकते हैं. सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर टैक्सेज ने आरोप लगाया गया है कि बुखार की दवा डोलो बनाने वाली माइक्रो लैब्स ने महामारी के दौरान डॉक्टरों को उपहार पर 1,000 करोड़ खर्च किए हैं. हालांकि कंपनी ने आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया और दावा किया कि उसने डोलो की मार्केटिंग के लिए सालाना 15-20 करोड़ से ज्यादा खर्च नहीं किया. अब सरकार डॉक्टरों को कोई मुफ्त उपहार स्वीकार करने से रोकने के तरीके तलाश रही है. होटल में ठहरने, घड़ियां, यात्राओं की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
हालांकि कई साल पहले ही भारत सरकार एलोपैथी के डॉक्टरों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट जारी कर चुकी है. जिसमें कहा गया था कि विज्ञापन के जरिए मरीजों को आकर्षित नहीं किया जा सकता है. मतलब डॉक्टर अपना प्रचार नहीं कर सकते हैं. डॉक्टरों के लिए आचार संहिता के मुताबिक मरीजों को दवा, डायग्नोस्टिक और अन्य उपचारों के लिए रेफर करना गलत है. आचार संहिता के मुताबिक फार्मा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए जाने वाले तोहफे, मनोरंजन, travel facilities, टिकट, कैश पर रोक है. लेकिन नियम सख्ती से लागू नहीं हुए हैं. नियमों की अक्सर धज्जियां उड़ाई जाती हैं.
2021 में फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने फार्मा फर्मों के unethical marketing practices का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. अधिकारियों के मुताबिक फेडरेशन ने अपील में मेंशन किया कि यूनिफॉर्म कोड ऑफ कंडक्ट मजबूत नहीं है और इसे एक अधिनियम में बनाया जाना चाहिए. हालांकि कानून से ज्यादा स्टेट मेडिकल काउंसिल इस मामले में ज्यादा प्रभावी हो सकती है. ऐसी गतिविधियों में लिप्त डॉक्टरों पर कड़ी नजर बनाई हुई है.
वहीं, इसको लेकर कई राज्यों में नियम हैं, बस इसे एक जगह डिफाइन नहीं किया गया है. इसलिए, कभी-कभी ऐसी गतिविधियों पर नज़र रखना मुश्किल हो जाता है. इस मामले में हल निकल सकता है अगर डॉक्टर्स ब्रांडेड की बजाय जेनरिक दवाएं लिखना शुरू कर दें. जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए बड़ी जागरूकता अभियान की जरूरत है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के कोचीन चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष डॉ राजीव जयदेवन ने कहा कि फॉर्मा बइंडस्ट्री को पेन जैसे उपहार देने की अनुमति है. बता दें कि IBEF के रिपोर्ट ये बताती है कि इंडिया में खुल 3000 से भी ज्यादा ड्रग कम्पनियां है और इन सब के पास 10500 से भी ज्यादा मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट हैं. विश्व स्तर पर, भारत दवा उत्पादन के मामले में मात्रा के हिसाब से तीसरे और मूल्य के हिसाब से 14वें स्थान पर है.
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