ओला ई-स्कूटर की रिकॉर्ड प्री-बुकिंग ने ई-व्हीकल्स की ओर कस्टमर्स के रुझान को साबित कर दिया है. इससे न सिर्फ कस्टमर्स की दिलचस्पी का पता चल रहा है बल्कि ईंधन से ई-व्हीकल की ओर बढ़ते मार्केट की झलक भी मिलने लगी है. हालांकि, यह सच है कि ओला ई स्कूटर दुनिया में न तो पहला और न ही आखिरी नाम है. डीजल-पेट्रोल की आए दिन बढ़ रही कीमतों ने लोगों को ऑप्शन पर सोचने को मजूबर कर दिया है. हालात ऐसे हैं कि ईंधन 100 रुपये की कीमत तक पार कर चुका है. ऐसे में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी का रास्ता पहले से कहीं ज्यादा आसान हो गया है.
मार्केट में अभी भी ई व्हीकल्स को लेकर कुछ बाधाएं हैं जिन्हें समय रहते दूर करना बहुत जरूरी है. ई व्हीकल्स को बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले इसकी कीमतों पर विचार करना चाहिए. चूंकि बाजार में यह ईंधन युक्त वाहनों का ऑप्शन है. ऐसे में ई व्हीकल्स की कीमतें भी बराबर होनी चाहिए ताकि कस्टमर कम लागत वाले ऑप्शन पर विचार कर सके.
मैन्युफैक्चरर्स इसे लेकर काफी तेजी से काम भी कर रहे हैं. वहीं सरकार भी पहले से ही ई-व्हीकल्स को 100 फीसदी GST सब्सिडी के दायरे में ला चुकी है. जबकि कस्टमर्स को अब केवल पांच फीसदी जीएसटी का भुगतान करना पड़ रहा है जोकि पेट्रोल या डीजल व्हीकल्स के मुकाबले में काफी कम है.
इनके अलावा कस्टमर्स को व्हीकल लोन पर करीब 1.5 लाख का टैक्स रिबेट भी मिल रहा है. इन सभी ऑप्शन्स के जरिए ई व्हीकल्स के मार्केट को और तेजी से बढ़ाया जा सकता है.
इसी तरह दूसरी बड़ी बाधा ई व्हीकल्स की चॉर्जिंग को लेकर है. भारत साल 2025 तक ई व्हीकल्स का हब बनना चाहता है। लेकिन साल 2030 तक ई व्हीकल्स की उपलब्धता को आसान बनाने के लिए सीरियस ग्राउंड वर्क की आवश्यकता है. न सिर्फ ग्रीन हाईवे बल्कि रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए भी रिहाएशी इलाके और कर्मिशयल पार्किंग में ई व्हीकल्स की चार्जिंग सुविधा देनी चाहिए.
ऑटो स्क्रैपेज पॉलिसी को और अधिक स्पष्ट और सरल होना चाहिए. जैसे अगर कोई कस्टमर नया ई व्हीकल खरीदता है तो उसे पुराने वाहन के स्क्रैपेज पर हाई एमाउंट मिलना चाहिए.