डायवर्सिफिकेशन म्यूचुअल फंड निवेश का प्राथमिक उद्देश्य है. हालांकि, यह थंब रूल उस समय फेल हो जाता है, जब निवेशक डायवर्सिफिकेशन में संतुलन स्थापित करने में विफल रह जाते हैं. वर्तमान में, निवेशक बाजार में उपलब्ध कई सारे फंड्स में से अपने लिए उचित योजना चुनने के लिए संघर्ष करते हैं. पिछले साल की तुलना में इस साल NFO की संख्या काफी बढ़ रही है.
इस कैलेंडर वर्ष में अक्टूबर तक लगभग 140 एनएफओ जारी किए गए, जबकि पिछले साल जनवरी से दिसंबर के बीच लगभग 110 एनएफओ जारी किए गए थे. हालांकि, सेबी और एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (AMFI) ने हाल के वर्षों में अलग-अलग वर्गीकरण और योजनाओं के सुव्यवस्थीकरण के उपायों को अपनाया है. इसके बावजूद नई स्कीम्स की बाढ़ में से एक योजना का चयन करना एख औसत निवेशक के लिए कठिन काम है.
AMFI के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2021 तक देश के टॉप-30 शहरों (B30) के बाहर के व्यक्तिगत निवेशकों के पास केवल 26% एसेट्स थे, जबकि टॉप-30 शहरों (T30) के पास 74 फीसदी एसेट्स थे. T30 भारत के टॉप-30 भौगोलिक स्थानों को दर्शाता है, जबकि B30 टॉप-30 के बाहर के स्थानों को दर्शाता है.
इसका मतलब यह है कि टॉप-30 के बाहर के स्थानों को अभी भी म्यूचुअल फंड निवेश के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है. यह म्युचुअल फंड जागरूकता में वृद्धि और योजना के सरलीकरण के साथ प्राप्त किया जा सकता है.
निवेशकों द्वारा जो बड़ी गलती की जा रही है, वह ओवर-डायवर्सिफिकेशन है. चुनने के लिए बहुत अधिक विकल्प होना बहुत भ्रमित करने वाला हो सकता है. अत्यधिक डायवर्सिफिकेशन का एक महत्वपूर्ण नुकसान नियमित रूप से सभी निधियों को ट्रैक करने में कठिनाई है.
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि डायवर्सिफिकेशन अनावश्यक है. यदि डायवर्सिफिकेशन नहीं हो या अपर्याप्त हो, तो निवेशक को डराने वाले जोखिम अपने आप बढ़ जाएंगे. नतीजतन, निवेशकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके निवेश पोर्टफोलियो उचित रूप से संतुलित रहें. नियामकों को योजनाओं की बहुत अधिक जटिल प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है, खासकर जब एनएफओ में भारी वृद्धि हो रही है.