अक्टूबर में CNG और PNG के दाम बढ़ जाएं तो चौंकिएगा नहीं. क्योंकि नेचुरल गैस के आयात पर सरकार की लागत बढ़ गई है और उस बढ़ी हुई लागत का बोझ उपभोक्ताओं के कंधों पर पड़ सकता है. सरकार हर 6 महीने में नेचुरल गैस की कीमतों में बदलाव करती है. अगला बदलाव अक्टूबर में होने वाला है और आशंका है कि अक्टूबर में कीमतें बढ़ जाएंगी. 20 साल तक भारत को नेचुरल गैस की सप्लाई के लिए रूस की कंपनी गैजप्रॉम और भारतीय कंपनी गेल के बीच करार हुआ था. 2018 से गैजप्रॉम भारत को नेचुरल गैस की सप्लाई कर भी रही थी लेकिन इस साल रूस और यूक्रेन के युद्ध की वजह से मई के बाद सप्लाई बंद है.
इस वजह से भारत को दुनिया के दूसरे देशों से महंगे रेट पर गैस खरीद करनी पड़ रही है. इस साल अक्टूबर और नवंबर में डिलिवर होने वाली नेचुरल गैस के लिए भारत ने जो कीमत चुकाई है वह पिछले साल के मुकाबले दोगुनी है. गैजप्रॉम की तरफ से सप्लाई रुकने की वजह से देश में गैस के आयात में भी गिरावट आई है. बीते अगस्त के दौरान आयात 19 फीसद घटा है. अगस्त में 2.37 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस का आयात हुआ है. पिछले साल 2.92 बिलियन क्यूबिक मीटर नेचुरल गैस का इंपोर्ट हुआ था और गैस इंपोर्ट में आई गिरावट की वजह से इसकी खपत भी घट गई है. अगस्त के दौरान खपत 10 फीसद से ज्यादा घटकर 5.2 बिलियन क्यूबिक मीटर दर्ज की गई है.
आयात में कमी की वजह से हो रही किल्लत को दूर करने के लिए देश में नेचुरल गैस उत्पादन बढ़ाने पर जोर भी दिया जा रहा है लेकिन देश में जितनी नेचुरल गैस की खपत होती है. उसका लगभग आधा हिस्सा आयात करना पड़ता है और आयात होने वाली महंगी गैस ने CNG और PNG की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका को बढ़ा दिया है बल्कि यह महंगाई सिर्फ CNG और PNG से आगे निकलकर फर्टिलाइजर और पावर को भी महंगा कर सकती है. क्योंकि देश में नेचुरल गैस की सबसे ज्यादा खपत इन 2 सेक्टर में ही होती है. घरेलू स्तर पर पैदा होने वाली नेचुरल गैस की कीमतों को तय करने के लिए सरकार जिस फार्मुले पर काम करती है. उसको बदलने पर भी विचार हो रहा है और आशंका है कि नए फार्मुले से भी गैस कीमतों में बढ़ोतरी होगी.