अगर आप भी 5G डिवाइस खरीदने के बाद इसकी लॉन्चिंग का इंतजार कर रहे हैं तो ताजा खबरें आपको मायूस कर सकती हैं. क्योंकि मसला ये है कि देश में 5G की लॉन्चिंग टेलीकॉम ऑपरेटरों और सरकार की लड़ाई, इक्विपमेंट्स पर मचे पचड़ों में बुरी तरह से उलझ गई है.
मतलब, आपके वीडियो से ज्यादा बफ़रिंग 5G की लॉन्चिंग में हो रही है. कहानी ये है कि 5G स्पेक्ट्रम की रिजर्व प्राइसिंग को कम रखने के लिए टेलीकॉम ऑपरेटर पहले से प्रेशर बनाए हुए थे. इस चक्कर में ट्राई की सिफारिशें भी लंबे वक्त तक अटकी रहीं.
तमाम हीलाहवाली के बाद ट्राई ने स्पेक्ट्रम प्राइसिंग पर अपनी सिफारिशें दे दी हैं और ये दाम 35 से 40 फीसदी तक कम रखा गया है. सरकार को उम्मीद थी कि कंपनियां उसकी जय-जयकार कर उठेंगी, लेकिन, ऐसा हुआ नहीं. सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया यानी COAI ने कहा है कि स्पेक्ट्रम की रिजर्व प्राइसिंग में 90 फीसदी की कटौती होनी चाहिए.
संगठन का यह बयान स्पष्ट करता है कि मौजूदा प्राइसेस पर कंपनियां बढ़चढ़कर बोलियां लगाने के मूड में नहीं है और अगर ऊंचे दाम पर कंपनियां आएंगी तो 5जी आ भले जाएं लेकिन न तो सुलभ होगा और न ही सस्ता.
अब ये तो सरकार के लिए बड़ी उलझन वाली बात पैदा हो गई. खैर, मसला केवल प्राइसिंग का ही नहीं है. ट्राई ने सिफारिश की है कि प्राइवेट 5G नेटवर्क खड़ा करने के लिए दूसरी कंपनियों को भी स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाना चाहिए. इनमें टाटा कम्युनिकेशंस, L&T और टेक कंपनियां शामिल हैं.
टेलीकॉम ऑपरेटर कतई नहीं चाहते कि प्राइवेट एंटरप्राइज नेटवर्क्स को 5G दिया जाए. टेलीकॉम ऑपरेटर पूरी कमाई अपनी जेब में रखना चाहते हैं. COAI ने कहा है कि टेलीकॉम इंडस्ट्री के रेवेन्यू में कंपनियों की हिस्सेदारी 30 से 40 फीसदी के करीब है और ऐसे में एंटरप्राइजेज को स्पेक्ट्रम मिला तो टेलीकॉम ऑपरेटर्स का धंधा ही बैठ जाएगा. ऊपर से इतना महंगा स्पेक्ट्रम. सो ट्राई की सिफारिशें आते ही रार फैल गई है.
भारत में 5G क्रांति की राह में एक नहीं तमाम रोड़े हैं. एक मामला 5G गीयर्स यानी इक्विपमेंट्स का है. सरकार चाइनीज कंपनियों को एंट्री करने नहीं दे रही है. खासतौर पर हुवावे और ZTE सरकार के निशाने पर हैं.
अब टेलीकॉम ऑपरेटर्स के पास एक तो ऑप्शंस काफी कम हैं, दूसरा गैर-चाइनीज इक्विपमेंट्स हैं भी महंगे. इन इक्विपमेंट के वेंडर चुनने के लिए सरकार ने एक सख्त दायरा तय किया है. अब स्पेक्ट्रम पर एक दफा फिर लौटते हैं.
तो ट्राई की सिफारिशों के हिसाब से, ऑपरेटरों को 3300 से 3700 मेगाहटर्ज बैंड में प्रति मेगाहटर्ज 317 करोड़ रुपए चुकाने होंगे.
देशभर में सर्विसेज मुहैया कराने के लिए जरूरी 100 मेगाहटर्ज के लिए एक ऑपरेटर को कम से कम 31,700 करोड़ रुपए जेब से निकालने होंगे.
2016 और 20121 की तरह इस दफा भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती 700 मेगाहटर्ज बैंड के लिए बोलियां मंगाने की है. यानी कंपनियां इस बार भी शायद ही इस बैंड में अपनी बोलियां दें. खैर अभी तो सरकार को इन पर अपना आखिरी फैसला लेना है. लेकिन, ट्राई की सिफारिशों पर ही जैसा रायता फैला है उसे देखकर लगता नहीं कि हाल-फिलहाल सरकार 5G के झंझट सुलझा पाएगी. तब तक आप अपनी डिवाइस लेकर बैठे रहिए और इसमें 5G के सिग्नल आने का इंतजार कीजिए.