आपने साबुन से होने वाले नुकसान के बारे में तो सुना होगा लेकिन क्या कभी किसी ऐसे साबुन के बारे में सुना है कि जिसके इस्तेमाल से फायदे ही फायदे होते हैं. अगर नहीं तो चलिए बताते हैं ऐसे फायदेमंद साबुन के बारे में. जिस समय कोरोना से निपटने में देश का हर वर्ग और समाज के लोग अपना-अपना योगदान दे रहे थे, उस समय पश्चिमी महाराष्ट्र के सोलापुर स्थित इचलकरंजी में डीकेटीई संस्थान में पढ़ाई कर रहे छात्रों का एक समूह कुछ ऐसा तलाशने में जुटा था, जिससे आगे चलकर उनका नाम रोशन होने वाला था. जी हां, टेक्सटाइल डिप्लोमा विभाग के इन छात्रों की यही मेहनत रंग लाई और उन्होंने रतनजोत के पौधे से ऑर्गेनिक लिक्विड साबुन (Natural Soap) तैयार कर दिखाया.
रतनजोत कहें या इरामुंगली या फिर जेट्रोफा अलग-अलग नामों से जाना जाने वाला यह पौधा अपने औषधीय गुणों से हमेशा से दुनिया में वैकल्पिक चिकित्सा में उपयोग में लाया जाता रहा है. भारत में इस पौधे को शुरुआत में खरपतवार और फसलों को बर्बाद करने वाले आक्रामक पौधे के रूप में देखा जाता था, लेकिन जैसे-जैसे पौधे को लेकर देश में प्रयोग और परीक्षण बढ़े तो इसके लाभ भी लोगों को समझ में आने लगे. यही वजह है कि महाराष्ट्र के इचलकरंजी में स्थित डीकेटीई संस्थान के टैक्सटाइल डिप्लोमा विभाग के छात्रों की रुचि इस पौधे की ओर गई. छात्रों ने पाया कि इस पौधे में औषधीय गुण तो हैं ही, साथ ही साबुन के तौर पर भी इसको इस्तेमाल में लाया जा सकता है. लिहाजा छात्रों ने कोरोना काल में इस पौधे पर रिसर्च और परीक्षण किए, जिसका परिणाम 100 % लिक्विड साबुन के तौर पर सामने आया है.
डीकेटीई के छात्र राहुल काम्बले बताते हैं कि उन्होंने इस पौधे पर स्टडी करते वक्त यह पाया कि जेट्रोफा के पौधे के हर घटक में औषधीय गुणधर्म है. ऐसे में उन्होंने अन्य छात्रों के साथ मिलकर इस पौधे के बीज से निकाले गए तेल के द्वारा साबुन बनाया। इसका इस्तेमाल उन्होंने टेक्सटाइल वॉशिंग में किया.
वहीं इस शोधकार्य में जुटे एक अन्य छात्र ने बताया कि जेट्रोफा के ऑयल का डिटॉक्सिफिकेशन करके हैंड वॉश और मेडिकेटेड सोप बनाए गए हैं, जिसका कोई भी दुष्परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है। फिलहाल इसकी टेस्टिंग अभी जारी है.
चूंकि जेट्रोफा जिसे महाराष्ट्र में इरामुंगली कहा जाता है, उसके बीजों में प्राकृतिक रूप से एंटीवायरल और जीवाणुनाशक तत्व होते हैं। इसलिए इससे बने साबुन का इस्तेमाल न सिर्फ सुरक्षित है बल्कि कोरोना संकट के बाद उपजे हालातों में केमिकल से बने साबुन का प्राकृतिक और सस्ता विकल्प भी है. डीकेटीआई के छात्रों का मार्गदर्शन करने वाले शिक्षकों के मुताबिक उन्होंने शोध में पाया कि कैमिकलयुक्त साबुन और हैंड सैनिटाइजर के वजह से होने वाले कई साइड इफेक्ट्स जेट्रोफा से बने लिक्विड साबुन के रोजाना इस्तेमाल में देखने को नहीं मिलते हैं.
जेट्रोफा को जहां फसलों को खराब करने वाला आक्रामक पौधा माना जाता था, तो वहीं इसके बीजों को जहरीला बताकर इसे नष्ट कर दिया जाता था लेकिन भारतीय संस्कृति में आयुर्वेद और पौधों के महत्वपूर्ण स्थान को देखते हुए डीकेटीआई के छात्रों ने इस पौधे के बीजों पर शोध करने का निर्णय लिया। जैसे कहा जाता है कि हर पौधा प्रकृति का उपहार है, इस बात को सच साबित करते हुए डीकेटीआई के छात्रों ने जेट्रोफा के बीजों को भी इसी नजर से देखा और उस पर परीक्षण कर अंत में यह उपलब्धि हासिल की है.
ऐसे में रतनजोत कहे जाने वाले जेट्रोफा की फसल उगाकर किसान भी इससे काफी लाभ कमा सकता है. यह पौधा शोध में गुणकारी साबित हुआ है तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि यह कृषि भूमि के लिए स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ ही खाद भी तैयार कर सकता है. इसके अलावा इसके बीजों से अखाद्य तेल भी प्राप्त किया जा सकता है, जिसका उपयोग बायोडीजल के रूप में भी किया जा सकता है.
इससे बनाया हुआ बायोडीजल प्राकृतिक मित्र भी साबित हो सकता है. इस पौधे को एक बार लगाने के बाद कम से कम चालीस से पचास साल तक इसकी फसल प्राप्त की जा सकती है. इसके बीजों से तेल निकाला जाता है, जो पर्यावरण मित्र डीजल होने के कारण भविष्य का मुख्य ईंधन साबित हो सकता है. ऐसे में रतनजोत की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है.
रतनजोत, जिसे रंग-ए-बादशाह भी कहा जाता है, ‘बोराजिनासीए’ जीव वैज्ञानिक कुल का एक फूलदार पौधा है. दरअसल, इस पौधे की जड़ से एक महीन लाल रंगने वाला पदार्थ मिलता है. वास्तव में ‘रतनजोत’ नाम इस पौधे की जड़ से निकलने वाले रंग का है, लेकिन फिर इस पूरे पौधे को भी इसी नाम से पुकारा जाने लगा. इसे जेट्रोफा भी कहा जाता है. ग्रामीण इलाकों में इसे विदो, अरंड, जंगली अरंड, बाघ भेरंड आदि नामों से जाना जाता है.
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