हमारे देश में विभिन्न सभ्यता और संस्कृति देखने को मिलती है. यहां हर राज्य अपनी खासियत संजोए हुए हैं. इन राज्यों की यही खूबियां ना सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी इन्हें पहचान दिलाती हैं. अब बनारसी पान की बात करें तो इसके बारे में कौन नहीं जानता. लेकिन बिहार के मगही पान (Magahi Paan) का स्वाद ही निराला है. यही एक कारण है कि कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की मदद से अब विदेश निर्यात करने की भी तैयारी चल रही है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और APEDA के बीच एक करार होने जा रहा है. इसके तहत जीआई टैग प्राप्त प्रोडक्ट मखाना, जर्दालु आम, कतरनी चावल, लीची एवं मगही पान का एक्सपोर्ट करने की योजना तैयार की जा रही है. दरअसल किसी भी प्रोडक्ट को विदेश भेजने के लिए कुछ क्वालिटी टेस्ट की जरूरत होती है. टेस्ट में प्रोडक्ट के ओके होने के बाद ही उसका निर्यात किया जा सकता है.
पान अनुसंधान केंद्र के प्रभारी डॉ. एसएन दास ने APEDA के डीजीएम स्मिधा गुप्ता से हुई बातचीत के दौरान बताया कि विदेशों में निर्यात करने के लिए मगही पान के पत्ते का साल्मोनेला टेस्ट जरूरी होता है. गुड़गांव की फेयर लेबोरेटरी में होने वाले इस टेस्ट की रिपोर्ट आने के बाद ही मगही पान को विदेशों निर्यात किया जा सकेगा.
एएम एक्सपोर्ट ने पत्ते की टेस्ट रिपोर्ट सही आने पर उसे इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस व अरब देशों में निर्यात करने का भरोसा दिया है. टेस्ट में सेफ्टी सर्टिफिकेट मिलने के बाद पत्ते का निर्यात होगा.
टेस्ट रिपोर्ट ठीक आने पर पान के पत्तों का निर्यात शुरू हो जाएगा. डॉ. एसएन दास ने बताया कि पान के पत्ते के निर्यात होने से इसका फायदा खेती करने वाले किसानों को होगा. उन्हें बनारस ले जाकर मगही पान के पत्ते को औने-पौने दाम पर नहीं बेचना पड़ेंगे. किसानों को समय पर भुगतान होगा और अधिक लाभ मिलेगा.
नालंदा के अलावा नवादा, गया एवं औरंगाबाद जिलों के हजारों किसान मगही पान की खेती करते हैं. पान के पत्ते की मार्केटिंग की सही व्यवस्था नहीं होने से किसानों को काफी नुकसान होता है. निर्यात होने से किसानों को फायदा होगा. मगही पान को जीआई टैग मिला है.
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