कावेरी नदी, श्रीरंगम में दो अलग-अलग धाराओं में विभाजित होती है जिसमें से एक उत्तरी धारा को कोल्लिदम कहते हैं और दूसरी दक्षिणी धारा का नाम कावेरी ही है. जैसे-जैसे यह नीचे की तरफ बढ़ती हैं, दोनों धाराएं फिर एक साथ आती हैं. कल्लनई बांध (Kallanai Dam) को कावेरी नदी की दक्षिणी धारा पर बनाया गया है, जहां यह कोल्लिदम के पास आती है. बांध (Kallanai Dam) से कावेरी की धारा चार भागों में बंट गई- कोल्लिदम, कावेरी, वेंनारू और पुठु अरु. चोल राजा ने न सिर्फ यह बांध बनवाया बल्कि यहां से किसान अपने खेतों में पानी इस्तेमाल कर सकें इसके लिए कैनाल भी बनवाईं.
इन चार धाराओं से डेल्टा क्षेत्रों में अच्छी सिंचाई होने लगी और देखते ही देखते यहां पर सूखे और अनाज की कमी की समस्या खत्म हो गई. कहते हैं किसी जमाने में तंजावुर को बाहर से अन्न खरीदना पड़ता था लेकिन अब यहां चावल का अच्छा उत्पादन होता है.
आज यह बांध 400,000 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने में करता है मदद आज यह बांध 400,000 हेक्टेयर भूमि को सिंचित करने में मदद करता है. बांध (Kallanai Dam) के निर्माण के समय बड़े-बड़े पत्थरों को नदी के तल पर लगाया गया, जिनसे नदी की धारा की दिशा बदली गई. यह बांध अब भारतीय राज्य तमिलनाडु में है, लेकिन इसका इतिहास राज्य के निर्माण से लगभग 1,750 साल पहले का है. यह बांध (Kallanai Dam) वास्तव में देखने लायक है। चोल काल में इसकी लंबाई 329 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और ऊंचाई 5.4 मीटर है. चोल काल के बाद ब्रिटिश शासन के दौरान इस बांध में हल्का-सा बदलाव हुआ. अब इस बांध की लंबाई लगभग 1 किलोमीटर, चौड़ाई 20 मीटर व और ऊंचाई 66 फीट है.
साल 1804 में एक मिलिट्री इंजीनियर, कैप्टेन कॉल्डवेल को डेल्टा क्षेत्र में सिंचाई के निरिक्षण के लिए नियुक्त किया गया था. उन्होंने जब बांध (Kallanai Dam)का निरीक्षण किया तो उन्हें समझ में आया कि अगर बांध की ऊंचाई बढ़ा दी जाए तो लोगों को और ज्यादा पानी सिंचाई के लिए मिल सकता है. काल्डवेल के मार्गदर्शन में बांध की ऊंचाई को पत्थरों का उपयोग करके 0.69 मीटर और बढ़ाया गया. इससे बांध के पानी को सहेजने की क्षमता भी बढ़ गई। साल 1829 में ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त सर आर्थर टी कॉटन ने कल्लनई बांध की तकनीक को इस्तेमाल करते हुए ही इस क्षेत्र में और भी बांध बनवाए. उन्होंने ही इस बांध को ”ग्रैंड एनीकट” नाम दिया गया और उन्होंने इसे ”वंडर्स ऑफ़ इंजीनियरिंग” कहा था.
कैसे पहुंचे यहां तक यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में आना होगा. तिरुचिरापल्ली से कल्लनई बांध की दूरी महज 19 किलोमीटर है। यहां से सबसे पास तिरुचिरापल्ली एयरपोर्ट है जो 13 किमी दूरी पर है. रेलवे मार्ग की बात करें तो यहां सबसे नजदीक लालगुडी रेलवे स्टेशन है जो मात्र 4 किमी की दूरी पर है.
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