सूचना प्रौद्योगिकी (IT) ने भारत के प्रति दुनिया का नजरिया बदल दिया है. चाहे वह दुनिया को सेवाएं प्रदान करने वाले राष्ट्र के रूप में हो या एक विशाल बाजार के रूप में. ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था महामारी से जूझ रही है और औपचारिक क्षेत्र से पुरुषों की तुलना में अधिक महिला कर्मचारियों को बाहर कर दिया है, आईटी कंपनियों ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. अपने कैंपस में लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए कुछ घरेलू दिग्गज टेक कंपनियों ने इस साल कैंपस भर्ती के माध्यम से लगभग 60,000 महिलाओं को रोजगार देने का फैसला किया है. यह भर्ती एंट्री लेवल पर की जाएगी. वर्तमान में सॉफ्टवेयर क्षेत्र में लगभग 34% कर्मचारी महिलाएं हैं.
आईटी उद्योग अर्थव्यवस्था का एक शोकेस सेगमेंट है. यह न केवल चौबीसों घंटे स्टील और कांच की इमारतों से वैश्विक ग्राहकों को सेवा प्रदान करता है, बल्कि यह मानव संसाधनों के पूल के रूप में तेजी से बढ़ते शिक्षित शहरी मध्यम वर्ग का उपयोग करता है. NASSCOM की 2018 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक गतिशीलता ने महिलाओं को प्रबंधकीय कौशल विकसित करने, नेटवर्क स्थापित करने और समग्र कैरियर प्रगति में पुरुषों से अधिक सफलता प्राप्त करने में मदद की. आईटी क्षेत्र देश के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी का एक इंजन रहा है.
महिलाओं पर तकनीकी कंपनियों का फोकस इस तथ्य को ठीक करने में मदद करेगा कि महिलाओं को केवल महामारी के कारण ही नहीं बल्कि कार्यस्थल पर ही अधिक नुकसान उठाना पड़ा है. राष्ट्रीय महिला आयोग ने स्वयं बताया है कि महामारी के दौरान घरेलू हिंसा की अधिक घटनाएं सामने आई हैं.
भारतीय श्रम शक्ति अक्सर महिलाओं के बारे में परस्पर विरोधी संकेत देती है. उस समय, जब ILO ने नोट किया कि महिला भागीदारी कम रही है, तब कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां महिलाएं नई ऊंचाईयों को छू रही हैं. भारत में महिला ट्रक ड्राइवर और लड़ाकू पायलट दोनों मिल सकते हैं. ये वे काम हैं, जो पारंपरिक रूप से पूरी दुनिया में पुरुषों के गढ़ माने जाते हैं. कॉरपोरेट इंडिया में महिलाएं नेतृत्व की भूमिका में हैं. टोक्यो ओलंपिक में भारत के लिए जो व्यक्तिगत पदक आए हैं, वे महिला खिलाड़ियों ने अर्जित किए हैं. ब्लू-कॉलर सेगमेंट में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की चुनौती है.
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