पूर्व केंद्रीय तेल मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली ने गुरुवार को कहा है कि केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीजल को ‘GST’ के दायरे में लाने पर विचार करने से पहले वस्तु एवं सेवा कर (GST) अधिनियम में मौजूद खामियों को दूर करना होगा. उन्होंने कहा कि जीएसटी (GST) के दायरे में पेट्रोल और डीजल को लाए जाने की स्थिति में राज्यों को होने वाले राजस्व के नुकसान की पर्याप्त रूप से भरपाई की जानी चाहिए.
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि कार्य प्रणाली, अनावश्यक कराधान और कर की दरों के संदर्भ में जीएसटी (GST) अधिनियम में मौजूद खामियों ने व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ डाल दिया है, जिससे कारोबारी परेशान हो रहे हैं और इससे भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिला है.
मोइली ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के प्रस्ताव को आगे बढ़ाने से पहले उन्हें पूरे जीएसटी अधिनियम की समीक्षा करनी होगी. जीएसटी (GST) अधिनियम को उपयुक्त रूप से नये सिरे से तर्कसंगत बनाना होगा और खामियों को दूर करना होगा.’’
राज्यसभा में बुधवार को भाजपा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि अगले 8 से 10 साल तक पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाना संभव नहीं है क्योंकि इससे राज्यों को राजस्व के तौर पर सालाना 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा.
उन्होंने कहा था, ‘‘पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने का मुद्दा बार-बार उठाया जाता रहा है. मैं लंबे समय तक जीएसटी (GST) से जुड़ा रहा हूं, मैं सदन से जानना चाहता हूं कि यदि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी (GST) के दायरे में लाया जाता है तो राज्यों को राजस्व के तौर पर होने वाले दो लाख करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान की भरपाई कौन करेगा?’’
इससे पहले मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फाइनेंस बिल 2021 पर लोकसभा में चर्चा के दौरान कहा था कि अगर ज्यादा टैक्स को लेकर चिंता है और राज्य इसपर चर्चा के लिए तैयार हैं तो GST काउंसिल की अगली बैठक में अगर इस पर चर्चा होती है तो सरकार इसका स्वागत करेगी और अपने एजेंडा में भी इसे शामिल करेगी. उन्होंने ये भी कहा कि पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर चिंता होना जायज है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि इसपर चर्चा करना और काउंसिल में इसे उठाना राज्यों को ही करना होगा.
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