भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी (vaccine diplomacy) से इस बात का पता चला है कि भारत को अपने नागरिकों से ज्यादा फिक्र अपने पड़ोसियों की है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 20 मार्च तक भारत कोविड-19 वैक्सीन के 6 करोड़ शॉट्स दूसरे देशों को सप्लाई कर चुका है. इसी तारीख तक भारत अपने नागरिकों को 4.5 करोड़ वैक्सीन डोज लगा चुका है. दूसरे देशों को दी गई वैक्सीन में अनुदान, बिक्री और कोवैक्स के जरिए की गई सप्लाई शामिल है. कोवैक्स एक ग्लोबल वैक्सीन अलायंस है जिसमें CEPI, GAVI, Unicef और विश्व स्वास्थ्य संगठन शामिल हैं.
भारत की मुहैया कराई गई 6 करोड़ डोज में से 82 लाख अनुदान के तौर पर, 3.4 करोड़ कमर्शियल बिक्री के जरिए और 1.8 करोड़ कोवैक्स के जरिए मुहैया कराई गई हैं. बांग्लादेश को सबसे ज्यादा 90 लाख जोज मिली हैं. इसमें से 20 लाख बतौर अनुदान दी गई हैं. इसके बाद म्यांमार का नंबर आता है.
श्रीलंका को 5 लाख डोज भारत से मिली हैं. पाकिस्तान ने वैक्सीन के लिए अपने सदाबहार दोस्त चीन पर भरोसा किया है. हालांकि, चीन की वैक्सीन लगवाने के बाद भी पाकिस्तान के पीएम इमरान खान को कोरोना संक्रमण हो गया. मोरक्को, ब्राजील, सउदी अरबिया और दक्षिण अफ्रीका ने क्रमशः 70 लाख, 40 लाख, 30 लाख और 10 लाख वैक्सीन डोज भारत से खरीदी हैं.
भारत अब तक 72 देशों को वैक्सीन सप्लाई कर चुका है. दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारत ने सार्क कोविड-19 फंड तैयार किया है और 42 देशों के 1,100 मेडिकल प्रोफेशनल्स को ट्रेनिंग दी है. अफ्रीकी देश कोवैक्स के सबसे बड़े लाभार्थी रहे हैं. दूसरी ओर, चीन के ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि चीन ने अपने नागरिकों को 7.5 करोड़ वैक्सीन डोज लगा दी हैं. चीन ने पांच वैक्सीन डिवेलप की हैं जिन्हें इमर्जेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है. चीन ने अपनी आबादी के 40 फीसदी हिस्से यानी करीब 56 करोड़ लोगों को जून अंत तक वैक्सीन लगाने की योजनाओं को तेजी से लागू किया है. इसके बाद चीन 33 करोड़ और लोगों को साल के अंत तक वैक्सीन लगाना चाहता है. इस तरह से चीन की कुल 64 फीसदी आबादी कवर हो जाएगी.
ग्लोबल टाइम्स ने 1 मार्च को खबर दी है कि चीन ने 53 विकासशील देशों को वैक्सीन दान में दी है और 27 देशों को इसका निर्यात कर दिया है. खबरों के मुताबिक, चीन ने करीब 39 लाख डोज दान दी हैं. यह चीन के अपने इस्तेमाल के लिए रखी गई डोज का एक मामूली हिस्सा भर है.
भारत इस मैदान में अकेला खड़ा है जिसने अपने हित को छोड़कर अपनी इमेज को बनाने पर ज्यादा जोर दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, दुनियाभर में भेजी गई 40 करोड़ वैक्सीन में से 90 फीसदी अमीर देशों को गई हैं. अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है, “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि पहले अमरीकियों की मदद की जाए उसके बाद ही हम दुनिया की मदद करेंगे.”
लेकिन, महाराष्ट्र और दिल्ली में कोविड के बढ़ते मामलों के साथ ही सरकार को अब देश में वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ानी होगी. भारत ने दो वैक्सीन को मंजूरी दी है, इसमें से एक ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन है और इसके अलावा स्वदेसी कोवैक्सिन को भी मंजूरी दी गई है.
कोविशील्ड को सीरम इंस्टीट्यूट बना रही है. इसके सीईओ ने कहा है कि उनकी योजना साल के अंत तक 1.5 अरब डोज उपलब्ध कराने की है.
लेकिन, घरेलू मजबूरियां कूटनीतिक पहुंच के रास्ते का अवरोध शायद ही बन पाएं. 12 मार्च को मीटिंग में को क्वॉड देशों ने चीन के पड़ोसी देशों को 1 अरब डोज देने का वादा किया है. क्वॉड में यूएस, ऑस्ट्रेलिया, इंडिया और जापान शामिल हैं. इन सभी का मकसद चीन के विस्तारवाद पर रोक लगाना है. भारत मैन्युफैक्चरिंग करेगा जबकि अन्य तीन देश वित्तीय और लॉजिस्टिक सपोर्ट देंगे.
हालांकि, अगर घरेलू बहुसंख्यकवाद के चलते भारत की छवि एक क्षेत्रीय दबंग के तौर पर बनी तो भारत की वैक्सीन डिप्लोमैसी से बनने वाली अच्छी इमेज को झटका लग सकता है. मसलन, बांग्लादेश भारत के नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) से नाराज रहा है और उसे बांग्लादेशी घुसपैठियों के नारे से भी दिक्कत है. नेपाल के रिश्ते भी भारत के साथ अच्छे नहीं हैं.
लेकिन, विकासशील देशों के लीडर के तौर पर भारत के लिए कोविड-19 की उचित आपूर्ति के लिए जोर देना जरूरी है. अमरीका और यूरोपीय यूनियन ने वैक्सीन डिवेलपमेंट में अरबों डॉलर लगाए हैं और रेगुलेटरी एप्रूवल्स को तेज किया है, लेकिन
वे ड्रग मैन्युफैक्चरर्स को गरीब देशों को वैक्सीन देने के लिए राजी नहीं कर पाए हैं. विश्व व्यापार संगठन में भारत कंपल्सरी लाइसेंस के लिए दबाव बनाए हुए है. इसमें पब्लिक हेल्थ इमर्जेंसी में पेटेंट से छूट दिए जाने की बात है. लेकिन, पश्चिमी देश भारत के इस प्रस्ताव को बढ़ने नहीं दे रहे हैं.
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