महामारी के दौर में आर्थिक मुश्किलों पर सरकार का सबसे ज्यादा फोकस होना चाहिए. कोविड-19 के दूसरे दौर ने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है और इसके चलते पहले से अर्थव्यवस्था के सामने बना हुआ संकट और ज्यादा गहरा गया है.
मौजूदा हालात में तेलंगाना सरकार ने प्रशासनिक अधिकारियों के लिए 32 लग्जरी कारें खरीदने का फैसला किया है. इस खबर ने तमाम लोगों को सकते में डाल दिया है. और ऐसा होना स्वाभाविक भी है.
प्रशासनिक अधिकारियों के महंगी गाड़ियों में चलने से हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन असली सवाल इस फैसले की टाइमिंग की वजह से पैदा हो रहा है. ये वक्त किसी भी लिहाज से इस तरह के खर्च के लिए उचित नहीं था.
इस मामले में क्या नौकरशाहों ने कोई खास दरख्वास्त सरकार से की थी? साथ ही एक खास कैटेगरी की कार क्यों सेलेक्ट की गई? इन सवालों का जवाब निश्चित तौर पर सरकार की ओर से आना चाहिए क्योंकि आखिरकार ये पैसा आम टैक्सपेयर की जेब से आ रहा है.
ये वो वक्त है जबकि सरकार को एक-एक पैसा आम लोगों की भलाई पर खर्च करना चाहिए. ऐसे में जब इस तरह की खबरें आती हैं तो आम लोगों का भरोसा सरकारों और अधिकारियों से उठ जाता है.
कोविड-19 के हालात पहले से ही पूरे देश को हिला चुके हैं. उस वक्त पर ऐसे खर्च करना जिसका आम लोगों की भलाई से कोई ताल्लुक नहीं है, निहायत ही गैर-जिम्मेदाराना कदम है.
इस तरह के फैसलों को करने से पहले सरकार को संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए.
तेलंगाना के वित्त मंत्री हरीश राव ने कहा था कि कोरोना वायरस के चलते लगाए गए लॉकडाउन की वजह से राज्य को 4,100 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है. उन्होंने केंद्र से इस संकट में उबरने की मदद मांगी थी.
इस तरह के फैसले एकदम फिजूलखर्च हैं.
ये समय लोगों के साथ सहानुभूति दिखाने और फालतू के खर्चों पर पूरी तरह से लगाम लगाने की है.