देश में मंदी भले ही न आई हो लेकिन वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती का असर भारत के उन उद्योगों पर दिखने लगा है, जिनमें बना सामान विदेशों को एक्सपोर्ट होता है. देश के कपड़ा उद्योग को ही देख लीजिए. अमेरिका और यूरोप में आर्थिक सुस्ती ने वहां पर भारतीय कपड़ों के लिए मांग घटा दी है और देश से कपड़ों के निर्यात में भारी गिरावट देखने को मिली है.
रेडीमेड कपड़ों का निर्यात 28 महीने के निचले स्तर पर
अक्टूबर के दौरान देश से रेडीमेड कपड़ों का निर्यात 28 महीने के निचले स्तर तक टूट गया है. सिर्फ 98.87 करोड़ रुपए के रेडीमेड गारमेंट का एक्सपोर्ट हो पाया है. कॉटन यार्न एक्सपोर्ट का भी ऐसा ही हाल है. अक्टूबर में उसके निर्यात में 46 फीसद की भारी गिरावट देखने को मिली है. सिर्फ 71.9 करोड़ रुपए कॉटन यार्न का एक्सपोर्ट हो पाया है.
कमजोर वैश्विक मांग की वजह से एक्सपोर्ट में गिरावट
पहले कच्चे माल की कमी की कपड़ा उद्योग जूझ रहा था क्योंकि एक्सपोर्ट मांग को पूरा करने जितना उत्पादन नहीं हो पा रहा था. अब कच्चे माल की सप्लाई की स्थिति बेहतर जरूर हुई है लेकिन कमजोर वैश्विक मांग की वजह से एक्सपोर्ट में गिरावट बढ़ती ही जा रही है.
अगस्त में निट्वेयर एक्सपोर्ट में 17.4 फीसद की गिरावट
देश के बड़े टेक्सटाइल हब त्रिपुर से निट्वेयर एक्सपोर्ट के आंकड़े ही देख लीजिए. अगस्त में त्रिपुर से निट्वेयर एक्सपोर्ट में 17.4 फीसद की गिरावट देखने को मिली थी, जो सितंबर में बढ़कर 33 फीसद के ऊपर पहुंची और अक्टूबर में 40 फीसद के करीब लुढ़क गई. कपड़ा एक्सपोर्ट में गिरावट ऐसे समय पर आई है, जब देश के उद्योगों के लिए कपास के तौर पर कच्चा माल 6 महीने पहले के मुकाबले 25 फीसद से ज्यादा सस्ता हुआ है. मंडियों में कपास का भाव प्रति क्विंटल 9,000 रुपए के नीचे आ गया है. जून में भाव 11-12 हजार रुपए के बीच पहुंच गया था.
मंदी को ऐसे दिया जा रहा बुलावा
दुनियाभर में महंगाई के खिलाफ लड़ाई में कर्ज महंगा किया जा रहा है और मंदी को बुलावा दिया जा रहा है. भारतीय कपड़ों के बड़े बाजार यूरोप के कुछ देशों में तो मंदी दस्तक भी दे चुकी है. कई और देशों में पहुंचने वाली है और ऐसी स्थिति में भारत से होने वाले कपड़ों के निर्यात पर और असर पड़ सकता है और कपड़े ही क्यों ज्वेलरी, मसाले, चावल, मैन्युफैक्चर्ड गुड्स और फुटवेयर जैसे प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट भी प्रभावित हो सकता है. क्योंकि भारत से एक्सपोर्ट होने वाली इन सभी वस्तुओं के निर्यात का बड़ा हिस्सा यूरोप को जाता है.