आम आदमी को राहत के लिए जीएसटी काउंसिल (GST Council) ने जरूरी दवाओं, मेडिकल डिवाइस और एंबुलेंस जैसे जरूरी सेवाओं पर टैक्स दर घटाई है. कुछ दवाओं पर जीएसटी शून्य कर दी गई है. ये कदम काफी पहले उठाया जा सकता था लेकिन काउंसिल ने जिस तरह चर्चाओं के बाद ये फैसला लिया वो राज्यों की अहम भूमिका को दर्शाता है. जीएसटी फ्रेमवर्क जैसे ही चर्चाओं को अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए भी अमल में लाना चाहिए.
28 मई को हुई बैठक में जीएसटी काउंसिल (GST Council) किसी फैसले पर नहीं पहुंच पाई थी. केंद्रीय वित्त मंत्री ने अलग-अलग राज्यों से आठ मंत्रियों के समूह का गठन किया ताकि इन सामान पर टैक्स दरों पर फैसला लिया जा सके. मंत्रियों के समूह को 10 दिन का समय दिया गया था जिसके बाद उन्हें अंतिम फैसले पर पहुंचना था.
इस प्रक्रिया में राज्यों के मत को सुना गया जो इस लोकतंत्र की नींव है. हालांकि, एक सदस्य ने ये भी बताया कि इस ग्रुप में कोई भी ऐसा नहीं था जो पूरी तरह टैक्स छूट के पक्ष में हो.
अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का हल चर्चा के जरिए निकाला जा सकता है. इस मॉडल के जरिए राज्य सरकारों में मौजूद विशेषज्ञों की मदद ली जा सकती है ताकि अर्थव्यवस्था में रिकवरी कैसे लाई जाए उसपर निर्णय लिए जा सके. केंद्र सरकार इकोनॉमी से जुड़ी संस्थाओं के साथ चर्चा कर सकती है क्योंकि भारत में बढ़ती बेरोजगारी और इनकम में आ रही लगातार कमी चिंता खड़ी कर रहे हैं. ये भारत के इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं. ये समय लीक से हटकर कुछ करने का है.