एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर का आना तय है. इस मुश्किल माहौल में वैक्सीनेशन की दर पर पूरा फोकस होना चाहिए क्योंकि इससे ही बड़े तौर पर ये तय होगा कि हम तीसरी लहर से कितनी मजबूती से लड़ सकते हैं. तमाम जद्दोजहद और राजनीतिक खींचतान के बाद 21 जून को रोजाना वैक्सीनेशन का आंकड़ा अपने पीक पर पहुंच गया था और इस दिन 8.5 करोड़ डोज लगाए गए थे. इससे वैक्सीनेश की मुहिम में तेज रफ्तार आने की उम्मीद पैदा हो गई थी.
हालांकि, इसके बाद के दिनों में वैक्सीनेशन की रफ्तार में गिरावट दर्ज की गई. अब ये आंकड़ा रोजाना 30 से 40 लाख के बीच है. मई के आखिरी हफ्ते में सरकार ने देश को भरोसा दिलाया था कि इस साल के अंत तक 108 करोड़ भारतीयों को वैक्सीन लगा दी जाएगी. ये देश में कुल वयस्कों की संख्या है. हालांकि, वैक्सीनेशन की मौजूदा रफ्तार से ये टारगेट पूरा होता नहीं दिख रहा है.
अर्थव्यवस्था के दोबारा खड़े होने की उम्मीद बड़े तौर पर वैक्सीनेशन पर टिकी हुई है. अर्थशास्त्री रिकवरी को वैक्सीनेशन की रफ्तार से जोड़ रहे हैं. महामारी की और लहरें और पाबंदियों के दौर न सिर्फ रिकवरी को रोकेंगे, बल्कि इससे नौकरियां खो चुके, सैलरी कट का सामना कर रहे और कारोबारों के धराशायी होने का सामना कर रहे करोड़ों लोगों के लिए भी मुश्किलों का दौर और लंबा खिंच जाएगा.
वैक्सीनेशन को लेकर बने हुए भ्रम के बीच सरकार को ये स्पष्ट करना चाहिए कि देश में कितनी वैक्सीन्स का प्रोडक्शन हो रहा है. ये आंकड़ा अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है. कोविड संक्रमण और इससे हुई मौतों के आंकड़े भी पूरी तरह से सामने नहीं आए हैं.
सरकार को एक डैशबोर्ड बनाना चाहिए जहां देश में वैक्सीन्स के रोजाना उत्पादन के आंकड़े दिए जाएं. सरकार को बाहर से मंगाई जा रही वैक्सीन्स के आंकड़े को भी जारी करना चाहिए.
मौजूदा हालात में लोगों को ये पता होना चाहिए कि देश में कितनी वैक्सीन्स का उत्पादन हो रहा है और आने वाले हफ्तों में अनुमानित कितनी वैक्सीन्स बनेंगी. लोगों की जिंदगियां और भाग्य इन आंकड़ों से जुड़े हुए हैं.