क्या गेहूं और चावल के बाद अब सरकार दालों के एक्सपोर्ट पर भी लगाम लगाएगी. ये सवाल ऐसे समय उठ रहा है जब अधिकतर दालों की कीमतें बढ़ने लगी है. इस साल खरीफ दलहन का रकबा भी पिछड़ा हुआ है और देश से दालों का एक्सपोर्ट 4 गुना से ज्यादा बढ़ गया है. इस साल अप्रैल से जुलाई के दौरान देश से 3.25 लाख टन दलहन का निर्यात हो चुका है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 337 फीसद अधिक है.
वित्तवर्ष 2021-22 के दौरान पूरे साल में 3.88 लाख टन से ज्यादा दालों का निर्यात हुआ था जो देश से दलहन का रिकॉर्ड है लेकिन पिछले साल जितना दलहन एक्सपोर्ट हुआ. इसका लगभग 84 फीसद इस साल के 4 महीने में ही हो गया है. ऊपर से इस साल खरीफ दलहन की खेती भी पिछले साल के मुकाबले घट गई है. कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 9 सितंबर तक देशभर में खरीफ दलहन का रकबा 5 लाख हेक्टेयर से ज्यादा पिछड़ा हुआ है.
तीनों प्रमुख दलहन यानी अरहर, उड़द और मूंग की खेती घटी है और इस वजह से तीनों की उपज घटने की आशंका है. दालों के बढ़े हुए निर्यात और खेती में आई कमी की वजह से इनकी कीमतों को हवा मिल रही है. रिटेल बाजार में पिछले 15-20 दिन के भाव को देखें तो कीमतों में बढ़ोतरी ज्यादा हुई है और कटौती कम. दिल्ली में चने और मूंग के दाम बढ़े हैं. उड़द का भाव स्थिर रहा है और अरहर में हल्की नरमी आई है.
दालों की कीमत नियंत्रण से बाहर न जाए इसके लिए सरकार ने अपने स्टॉक से राज्यों को 8 रुपए के डिस्काउंट पर 15 लाख टन चने की सप्लाई का फैसला जरूर किया है लेकिन इस फैसले के बाद भी रिटेल बाजार में भाव पर बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा है और कीमतें अगर बहुत ज्यादा बढ़ीं तो सरकार को गेहूं और चावल की तरह दालों के निर्यात को लेकर भी सख्ती करनी पड़ सकती है.