सरकार ने मंगलवार को बताया है कि कॉरपोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड्स का इस्तेमाल सरकार (Government) की केंद्रीय स्कीमों को लागू करने में नहीं किया जा रहा है.
वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्य सभा में प्रश्नकाल में बताया कि कंपनीज एक्ट 2013 के शेड्यूल 7 में यह स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है कि CSR के पैसों का कहां इस्तेमाल किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, “मैं यह कहना चाहता हूं कि फंड्स का इस्तेमाल सरकारी स्कीमों को लागू करने पर नहीं किया जाएगा. यह मिथक नहीं रहना चाहिए कि CSR फंड्स का इस्तेमाल सरकारी (Government) योजनाओं को लागू करने में किया जाता है. सरकार ने अलग–अलग कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त फंडिंग की है.”
ठाकुर ने कहा कि CSR फंड्स का इस्तेमाल स्थानीय इलाकों में विकास के कामों को करने में होता है जो कि सामाजिक जिम्मेदारी के हिस्से के तौर पर किया जाता है. इसे लेकर हर कंपनी की एक बोर्ड द्वारा तय की गई नीति होती है.
अब तक 60 फीसदी फंड्स को इन्हें लागू करने वाली एजेंसियों ने खर्च किया है और 40 फीसदी फंड को कंपनियों ने अलग-अलग संस्थाओं के जरिए खर्च किया है.
इसके अलावा, ठाकुर ने कहा कि जब कंपनीज एक्ट 2013 में अस्तित्व में आया था उस वक्त इंप्लीमेंटिंग एजेंसियों और एनजीओ के ब्योरे का कोई प्रावधान नहीं था.
हालांकि, मौजूदा सरकार (Government) ने इस कानून में बदलाव किया है और इसे इंप्लीमेंटिंग एजेंसियों के लिए अनिवार्य बनाया है कि वे खुद को कंपनी मामलों के मंत्रालय के तहत रजिस्टर्ड कराएं. इससे इन एजेंसियों के ब्योरे हासिल करने में मदद मिलती है.
वंंचित इलाकों में अलग-अलग मदों पर खर्च होने वाले पैसे के बारे में मैकेनिज्म को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में ठाकुर ने कहा कि पूरे देश में अधिकतम फंड्स शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण इलाकों के विकास पर खर्च किया जा रहा है.
TDP लीडर कनकमेडला रविंद्र के CSR गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए एक अलग मैकेनिज्म बनाने के संबंध में पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में अनुराग ठाकुर ने कहा कि सीएसआर के तहत 10 करोड़ रुपये से ज्यादा पैसे खर्च कर रही कंपनियों के लिए एक निर्देश जारी किया जा चुका है. इनसे अपनी गतिविधियों के इंपैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.
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