तपन पटेल
Investment in Gold in Akshay Tritiya: देश में सोने में निवेश का सांस्कृतिक इतिहास रहा है क्योंकि लोग विभिन्न अवसरों, त्योहारों और शुभ दिन को सोने की खरीदारी से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं. महंगाई और आर्थिक अनिश्चितता की स्थिति में सोने की मूल्य सुरक्षा की विशेषता पारंपरिक आभूषण खपत के अलावा निवेश को बढ़ावा देती है. “अक्षय तृतीया” उन दिनों में से एक है, जिसे धार्मिक मान्यता के अनुसार साल का सबसे शुभ दिन माना जाता है. ‘अक्षय’ का अर्थ है, ‘कभी नष्ट न होने वाला’ और इस तरह यह नए व्यवसाय, विवाह, निवेश और खेती की नई शुरुआत का दिन है. भारत में लोग कभी न खत्म होने वाली समृद्धि और प्रचुरता के लिए निवेश के रूप में सोना खरीदते हैं.
मौजूदा बाज़ार माहौल धार्मिक आस्था के साथ-साथ पोर्टफोलियो में निवेश के रूप में सोने के रणनीतिक निवेश (Strategic Investment) के लिए अनुकूल हो सकता है. हाल के महीने में सोने की कीमत में तेज़ी तेजी देखी गई और घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमत अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए. ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, भारत में सोने की कीमत 73000 रुपये प्रति 10 ग्राम पर, जबकि कॉमेक्स में कीमत 2400 डॉलर प्रति औंस को पार कर गई थीं. केंद्रीय बैंकों की सोने की खरीदारी, दर में कटौती की उम्मीद और भू-राजनीतिक जोखिम हालिया रैली के प्रमुख सहायक कारक रहे.
हमारा मानना है कि केंद्रीय बैंक की सोने की खरीदारी और अमेरिका की आर्थिक प्रतिकूलताओं से मध्यम अवधि में सोने की कीमत को सपोर्ट मिलता रहेगा. हालांकि, मौजूदा स्थिति मोमेंटम बाइंग की तुलना में अत्यधिक मात्रा में लॉन्ग पोज़ीशन को भी दर्शाता है. ईटीएफ प्रवाह की कमी, अस्थिर डॉलर सूचकांक, ब्याज दरों में कटौती देर से होने की आशंका और कमज़ोर आर्थिक आंकड़े सोने की कीमत के लिए चेतावनी के संकेत हैं. हमने सोना, डॉलर इंडेक्स और अमेरिकी बॉन्ड यील्ड के बीच दुर्लभ समानता देखी है और हमारा मानना है कि यह तालमेल आगे चलकर कभी भी टूट सकता है.
हम यहां कई कारकों पर विचार कर रहे हैं, जो आगे चलकर सोने को एक रणनीतिक निवेश साबित कर सकते हैं:
फेड की पहल/मंदी का जोखिम: ब्याज दरों में कटौती की आशंका मार्च से शुरू होकर अब जून तक पहुंच गई है और अब सिर्फ सितंबर में केवल एक दर कटौती का पूर्वानुमान सामने आ रहा है जो ‘लंबे समय तक उच्च’ दर चक्र का संकेत देता है, ऐसे में सोने की कीमत में तेज़ी आई है. भू-राजनीतिक कारकों के साथ-साथ दरों में कटौती या हल्की मंदी किसी भी तरह से सोने की कीमतों में तेज़ी का समर्थन करेगी.
केंद्रीय बैंक की मांग: वैश्विक केंद्रीय बैंकों की सोने की मांग पिछले दो वर्षों में अधिक बनी हुई है और गौरतलब है कि 2022 में 1081.9 टन और 2023 में 1037.4 टन की रिकॉर्ड खरीद दर्ज हुई है. चीन ने मार्च 2024 में लगातार 17वें महीने सोने की खरीदारी जारी रखी, जिससे उनकी कुल खरीदारी 72.74 मिलियन औंस हो गई. (विश्व स्वर्ण परिषद). रूस भी अपनी डी-डॉलराइज़ेशन की प्रक्रिया में सोने और विदेशी मुद्राओं के भंडार को दोगुना कर रहा है. वैश्विक केंद्रीय बैंक अपने सोने के भंडार में वृद्धि जारी रख सकते हैं जिससे सोने की कीमत स्थिर रह सकती है.
भू-राजनीतिक कारक: हमारा मानना है कि इस अवधि के दौरान सोने की कीमत में भू-राजनीतिक जोखिम प्रीमियम बना रह सकता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर सत्ता संघर्ष, छद्म युद्ध प्रमुख व्यापार नीतियों और व्यापार मार्गों को प्रभावित करते रहेंगे. आगामी अमेरिकी चुनाव, चीन के उकसावे और रूस की आक्रामकता वैश्विक स्थिरता के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं हैं.
वैश्विक ईटीएफ प्रवाह: भौतिक रूप से समर्थित गोल्ड ईटीएफ होल्डिंग अभी भी 2020 में दर्ज अपने सर्वकालिक उच्च स्तर से नीचे है. ऊंची कीमत के साथ वैश्विक गोल्ड ईटीएफ में ऐसी कमतर पोज़ीशनिंग आगे चलकर मांग बढ़ने का संकेत देती है.
डॉलर इंडेक्स/पीक यील्ड: हमने सोने, डॉलर इंडेक्स और ट्रेजरी यील्ड के बीच कीमतों में उतार-चढ़ाव में एक दुर्लभ तालमेल देखा है. ब्याज दरों में कमी से डॉलर और यील्ड पर दबाव पड़ सकता है, जिससे सोने की कीमत में मज़बूती आ सकती है.
सोने की कीमत में मौजूदा स्तर के मुकाबले मामूली कमी आ सकती है लेकिन हमारा मानना है कि सोने के अनुकूल बुनियादी स्थितियों के मद्देनज़र मध्यम अवधि में क्रमिक खरीद की रणनीति फायदेमंद रहेगी.
(लेखक टाटा एसेट मैनेजमेंट में फंड मैनेजर-कमॉडिटी हैं, प्रकाशित विचार उनके निजी हैं.)
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