रिजर्व बैंक की हाल की फाइनेंशियल स्टेबेलिटी रिपोर्ट में बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के डिजिटल फाइनेंशियल सर्विस सेक्टर में एंट्री को लेकर चिंताएं जताई हैं. गूगल, अमेजन, फेसबुक, ऐपल और माइक्रोसॉफ्ट के डिजिटल फाइनेंशियल सर्विस क्षेत्र में कारोबार पर रिजर्व बैंक की चिंता जायज है. अगर इन्हें मंजूरी मिल जाती है तो ग्राहकों के लिए सुविधा तो होगी लेकिन साथ ही कई और दिक्कतें भी हैं.
रिजर्व बैंक की चिंताएं ग्राहकों की सुविधा से कहीं आगे हैं. रिजर्व बैंक ने साइबर सिक्योरिटी, डेटा प्राइवेसी और एंटी-ट्रस्ट के मुद्दों पर चिंताएं जाहिर की हैं. इन कंपनियों के भारतीय कानून और डेटा सिक्योरिटी के दायरे से बाहर होने के कारण निजी जानकारी की सुरक्षा को लेकर चिंता रहेगी.
इसमें से एक ये है कि नॉन-फाइनेंशियल बिजनेस में भी काम करती हैं और इनका गवर्नेंस कई बार पारदर्शी नहीं होता जिससे डेटा के गलत इस्तेमाल की आशंका रहती है. दूसरा कि ये कंपनियां इस क्षेत्र में दबादबा बना सकती हैं और तीसरा कि अपने बड़े नेटवर्क का फायदा उठाते हुए फाइनेंशियल सर्विसेस के आगे निकल सकती हैं.
रिजर्व बैंक की प्रतिक्रिया को केंद्र सरकार और अमेरिकी टेक कंपनियों के साथ ई-कॉमर्स से लेकर डेटा प्राइवेसी के मुद्दों के बीच टकराव के परीपेक्ष्य में भी देखना चाहिए. अमेजन और गूगल बेसिक पेमेंट सर्विस में पहले से ही काम कर रहे हैं. फेसबुक, अमेजन और गूगल ने रिटेल पेमेंट और सेटलमेंट सिस्टम के लाइसेंस के लिए आवेदन दिया है.
रिजर्व बैंक की चिंताएं एक तरफ लेकिन भारतीय ग्राहकों की भी सुविधा का ख्याल रखना है. सरकार को भारतीय कंपनियों को इस तेजी से विस्तार होते सेक्टर के लिए प्रोत्साहना मिलना चाहिए जिससे डिजिटल इंडिया की तरफ तेजी से बढ़ा जा सके. इसी के साथ फाइनेंशियल इन्क्लूजन की मुहिम में भी मदद मिलेगी.