Environmental Politics: प्रत्येक कुछ वर्षों में, जलवायु परिवर्तन पर इन्टर-गवर्मेन्टल पैनल (IPCC) मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करता है. इस रिपोर्ट को पृथ्वी की जलवायु की स्थिति का सबसे व्यापक वैज्ञानिक मूल्यांकन के रूप में जाना जाता है. सोमवार को एकबार फिर IPCC ने अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें दुनिया के लिए कई पर्यावरणीय चेतावनी दी गईं हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा 1988 में IPCC को स्थापित किया गया था. IPCC स्वयं वैज्ञानिक अनुसंधान में शामिल नहीं होती है. इसके बजाय, वह दुनिया भर के वैज्ञानिकों से जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी जरूरी वैज्ञानिक जानकारी को पढ़ने और तार्किक निष्कर्ष निकालने का आह्वान करता है.
अब तक कुल पांच मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की गई
अब तक कुल पांच मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की गई हैं. यह छठी रिपोर्ट है. आपको बता दें, पहली रिपोर्ट 1990 में जारी की गई. पांचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट 2014 में पेरिस में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए जारी की गई थी. यह रिपोर्ट दुनिया भर के लिए पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के संबंध में मार्गदर्शक का काम करती है.
सोमवार को, आईपीसीसी ने अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर 6) का पहला भाग जारी किया. बाकी के दो हिस्से अगले साल रिलीज किए जाएंगे.
वैज्ञानिकों के तीन वर्क ग्रुप्स ने तैयार की है रिपोर्ट
आईपीसीसी रिपोर्ट, वैज्ञानिकों के तीन वर्क ग्रुप्स द्वारा तैयार की गई है. वर्किंग ग्रुप- I, जिसकी रिपोर्ट सोमवार को जारी की जा चुकी है. यह ग्रुप जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक आधार से संबंधित हिस्से पर काम करता है.
वर्किंग ग्रुप- II संभावित प्रभावों, कमजोरियों और अनुकूलन के मुद्दों को देखता है, जबकि वर्किंग ग्रुप- III उन कार्रवाइयों से संबंधित है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए की जा सकती हैं.
सोमवार को जारी की गई वर्किंग ग्रुप- I रिपोर्ट में 750 से अधिक वैज्ञानिकों ने योगदान दिया है. उन्होंने 14,000 से अधिक वैज्ञानिक साहित्य (प्रकाशनों) की समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष निकाला.
इस रिपोर्ट का महत्व
यह मूल्यांकन रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के बारे में सबसे व्यापक रूप से स्वीकृत वैज्ञानिक राय है. इस रिपोर्ट को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकारें अपनी नीतियों का आधार बनाती हैं और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता के लिए भी यह रिपोर्ट वैज्ञानिक आधार भी प्रदान करती है.
अबतक कुल 6 रिपोर्ट्स जारी की जा चुकी हैं और हम देख सकते हैं कि इन्हीं रिपोर्ट्स के आधार पर तमाम अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम और पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक्शन प्लान तैयार किए गए हैं. नीचे हम रिपोर्ट्स के मुख्य बिन्दु और उनके असर की चर्चा करेंगे
पहली आकलन रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु (1990)
i) रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप होने वाले कार्बन उत्सर्जन से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बहुत वृद्धि हो रही है.
ii ) इस रिपोर्ट में बताया गया था कि पिछले 100 वर्षों में वैश्विक तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. और जैसा अभी चल रहा है उसी हिसाब से, 2025 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस और 2100 तक 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना जताई गई थी.
iii) सन 2100 तक समुद्र का स्तर 65 सेमी बढ़ने की संभावना जताई गई थी.
इस रिपोर्ट को ही मुख्यता 1992 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की बातचीत का आधार बनाया था.
दूसरी आकलन रिपोर्ट (1995)
i) दूसरी रिपोर्ट्स में 2100 तक पूर्व-औद्योगिक स्तरों से वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान जताया लगाया था, और अधिक सबूतों के साथ बताया गया था कि समुद्र के स्तर में 50 सेमी की वृद्धि हुई है.
ii) 19वीं सदी के अंत से अबतक तापमान में 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्सियस की वैश्विक वृद्धि हुई। इस रिपोर्ट् में बताया गया था कि यह वृद्धि मूल रूप से प्राकृतिक नहीं है.
यह रिपोर्ट 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल के लिए वैज्ञानिक आधार बनी थी। इसके बाद देशों को कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए हैं.
तीसरी आकलन रिपोर्ट (2001)
i ) इस रिपोर्ट में सन 1990 की तुलना में 2100 तक वैश्विक तापमान में 1.4 से 5.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का अनुमान लगाया गया था. 10,000 वर्षों में से पिछले कुछ वर्षों में अचानक इसकी दर में बहुत अधिक वृद्धि हुई.
ii) पृथ्वी पर औसतन बारिश बढ़ने का अनुमान लगाया गया था. रिपोर्ट में यह भी भविष्यवाणी की गई थी कि 2100 तक, समुद्र का स्तर 1990 के स्तर से 80 सेमी तक बढ़ने की संभावना है.
इस रिपोर्ट में सबूतों के साथ यह प्रमाणित किया गया था कि ग्लोबल वार्मिंग ज्यादातर मानवीय गतिविधियों के कारण है.
चौथी मूल्यांकन रिपोर्ट (2007)
i) चौथी रिपोर्ट में बताया गया कि 1970 और 2004 के बीच ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई. 2005 में CO2 की वायुमंडलीय सांद्रता (379 पीपीएम) 650,000 वर्षों में अधिकतम रही थी.
ii ) रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था सबसे खराब स्थिति में, वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से सन 2100 तक 4.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है. वहीं समुद्र का स्तर 1990 के स्तर से 60 सेमी अधिक हो सकता है.
इस रिपोर्ट को आईपीसीसी के लिए 2007 का नोबेल शांति पुरस्कार मिला और 2009 में कोपेनहेगन जलवायु बैठक के लिए मजबूत वैज्ञानिक आधार उपलब्ध कराया था.
पांचवीं आकलन रिपोर्ट (2014)
पांचवी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया था कि 1950 के बाद से आधे से अधिक तापमान वृद्धि मानवीय गतिविधियों के कारण हुई है. वहीं पिछले 800,000 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड की वायुमंडलीय सांद्रता “अभूतपूर्व” यानि उम्मीद से अधिक हो गई है.
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि सन 2100 तक वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक समय से 4.8 डिग्री सेल्सियस तक हो सकती है.
इसके कारण “प्रजातियों का बड़ा हिस्सा” विलुप्त होने का सामना कर रहा है और उनके खाने के लिए चीजें कम हो रही हैं।
इस रिपोर्ट ने 2015 में पेरिस समझौते की वार्ता के लिए ठोस वैज्ञानिक आधार का काम किया. हालांकि इस समझौते से बाद में ट्रम्प ने अमेरिका को अलग कर लिया था. लेकिन बाइडेन के आने बाद अमेरिका ने दोबारा इस समझौते का पालन करना स्वीकार किया है.
भारत और उप महाद्वीप के लिए हैं कुछ चेतावनियां
इंटर-गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) वर्किंग ग्रुप- I की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले कुछ दशकों में भारत और उपमहाद्वीप में बढ़ती गर्मी की लहरें और सूखा, बारिश की घटनाओं में वृद्धि और अधिक चक्रवाती गतिविधियां होने की संभावना है.
भारतीय उपमहाद्वीप का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है, “1850-1900 की तुलना में 2000-2050 के बीच पूरे महाद्वीप में सतह पर अधिक दर से गर्मी बढ़ेगी. ये रुझान आने वाले दशकों में जारी रहेंगे.”
वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया के आसपास हिंद महासागर में सापेक्ष समुद्र का स्तर वैश्विक औसत की तुलना में तेजी से बढ़ा है, साथ ही तटीय क्षेत्र के नुकसान और तटरेखा पीछे खिसकने की दर भी बढ़ी है.