आम आदमी का जिंदगी में एक बार कार लेना का सपना जरूर होता है. भले ही कार छोटी क्यों न हो. कंपनियां भी उनकी जरूरत को ध्यान में रखते हुए बाजार में कई माॅडल लॉन्च करती हैं. सस्ती होने के चलते इनको काफी खरीदा जाता है.सालों से तो ऐसा ही होता आ रहा है. लेकिन क्या हो, जब हम ये कहें कि लोगों ने इनको खरीदना ही बंद कर दिया हो, तो क्या आप यकीन करेंगे.
जी हां, ये सच है. पिछले सात सालों में एंट्री-लेवल कारों की बिक्री सबसे निचले स्तर पर आ गई है. मगर, सवाल ये है कि ऐसा कैसे हुआ. तो आइए इस कारण को जान लेते हैं. दरअसल, महंगाई और कारों की ऊंची कीमतों के कारण बिक्री में जबरदस्त गिरावट आई है.
अब ये जान लेते हैं कि कीमतों में कितना इजाफा हुआ है. एक एंट्री-लेवल कार की औसत ऑन-रोड कीमत 42 प्रतिशत बढ़कर करीब साढ़े पांच लाख हो गई. वित्त वर्ष 2017 में ऑन-रोड कीमत करीब तीन लाख 39 हजार थी. ऐसे में उन लोगों का सपना दूर हो गया जो दोपहिया से आगे बढ़कर चारपहिया वाहन लेना चाहते थे. अब मॉडलों की बात कर लेते हैं.
ऑल्टो, वैगन कारों और आई10 जैसी छोटी एंट्री-लेवल की हिस्सेदारी सात साल में सबसे कम करीब 17 फीसदी पर आ गई है. जबकि फाइनेंशियल ईयर 2015 में ये आंकड़ा करीब 27 प्रतिशत था. कुल संख्या के लिहाज से इस अवधि में ये गिरावट लगभग 7 लाख इकाइयों से घटकर करीब साढ़े पांच लाख यूनिट तक रह गई है. पहली बार कार की खरीदने वालों का योगदान महज 46 से 47 प्रतिशत रहा है.
कुछ इन्हीं कारणों से Hyundai Motor ने इस महीने की शुरुआत में Santro को बंद कर दिया था. इधर, एंट्री-लेवल कारोंं के मार्केट में हाल फिलहाल रिकवरी की आशंका कम ही जताई जा रही है.
हालांकि कार निर्माताओं और विश्लेषकों का कहना है कि आर्थिक विकास, इनकम बढने और सेमीकंडक्टर की कमी को कम करने से काफी हद तक सुधार होगा. वहीं, भले एंट्री-लेवल कारों की बिक्री में कमी आई हो, लेकिन प्रीमियम कारों की जमकर खरीदारी हो रही है.
प्रीमियम कारों की बदौलत कार बाजार का वॉल्यूम वित्त वर्ष 22 में बढ़कर 48.5 प्रतिशत हो गया. वित्त वर्ष 2019 में ये 27.9 प्रतिशत था. सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स यानी सियाम के अनुसार, प्रीमियम कॉम्पैक्ट कारों का योगदान भी इस अवधि में 16.6 प्रतिशत से बढ़कर 20.5 प्रतिशत हो गया.
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