दिल्ली की रहने वाली संगीता ने जब महीनेभर का राशन मंगवाया. तो बिल पिछली बार से बढ़ा हुआ मिला. हिसाब लगाने पर पता चला कि बढ़े हुए बिल में खाने का तेल सबसे बड़ा विलन है. उसमें भी सरसों तेल 2 महीने वाले भाव के करीब ही था, लेकिन पाम, सोया और सूरजमुखी तेल ने राशन का बिल सबसे ज्यादा बिगाड़ा.
ये तीनों वे तेल हैं. जिनका देश की कुल खाद्य तेल खपत में 70 फीसद से ज्यादा योगदान है और जिनकी जरूरत पूरा करने के लिए देश को आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. देश में खपत होने वाला लगभग 98 फीसद सूरजमुखी तेल विदेशों से आयात होता है. इसी तरह करीब 96 फीसद पाम तेल और लगभग 50 सोया तेल के लिए निर्भरता आयात पर ही है. यानि इस साल खाने के उस तेल के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है… जिसकी सप्लाई दूसरे देशों से होती है.
जहां तक पाम ऑयल की बात है, तो प्रमुख उत्पादक और भारत के बड़े सप्लायर मलेशिया में उत्पादन कम है. इस वजह से पाम ऑयल लगातार महंगा हुआ है और असर अन्य खाद्य तेलों के भाव पर भी पड़ा है. वजह साफ है. कई रिफाइंड तेलों में मिलावट के लिए इसका इस्तेमाल जो होता है और देश में जितना खाने का तेल खपत होता है. उसमें लगभग रिफाइंड की हिस्सेदारी 90 फीसद है.
महंगे पाम ऑयल से खाद्य तेल की महंगाई का मीटर पहले ही भाग रहा था. तभी रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ और खाद्य तेल की महंगाई ने और स्पीड पकड़ ली. वजह थी सूरजमुखी का तेल. दुनियाभर के कुल सूरजमुखी तेल की 55-60 फीसद सप्लाई रूस और यूक्रेन से ही होती है और युद्ध की वजह से यह सप्लाई प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है. यही कारण है कि सूरजमुखी तेल की कीमतों में आग लगी हुई है. फरवरी की शुरुआत में जो सूरजमुखी तेल 1400 डॉलर के नीचे मिल रहा था. मार्च में उसकी कीमतें 2250 डॉलर के ऊपर जा चुकी थीं.
ये बढ़ी हुई कीमतें भारत जैसे देश के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो रही हैं.क्योंकि दुनिया में जितना सूरजमुखी तेल पैदा होता है उसका 11-12 फीसद हिस्सा भारत में खपत होता है और खपत होने वाला 98 फीसद सूरजमुखी तेल क्योंकि आयात होता है, तो जिस भाव पर मिलेगा उसपर खरीदना पड़ेगा. कुल लबो लुआब ये है की खाने के तेल की जो महंगाई पहले से भड़की हुई थी. उसे रूस-यूक्रेन युद्ध ने और भड़काया है और देश का हर किचन इसकी चपेट में आया है.