कोविड-19 जैसी महामारी से उबरना एक लंबी प्रक्रिया होने जा रही है. हालांकि, अच्छी खबर यह है कि टीकाकरण की गति तेज हो गई है. जनजीवन सामान्य हो रहा है, लेकिन तीसरी लहर का डर भी बना हुआ है. राज्यों को अब पर्याप्त मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ बेहतर ढंग से तैयार रहना चाहिए. हमारे पास बड़ा सबक यह है कि लॉकडाउन कोविड की समस्या का समाधान नहीं है. कार्यालयों के धीरे-धीरे फिर से खुलने और आर्थिक संकेतकों से यह संकेत मिल रहा है कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे अपने पुराने आकार में आ रही है.
यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कुप्रबंधन और अराजकता से यह रिकवरी बाधित न हो, जैसा कि दूसरी लहर के दौरान देखा गया था. भारत दूसरी लहर जैसी परिस्थितियां दोबारा बर्दाश्त नहीं कर सकता.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन ने सावधानियों में ढिलाई व बच्चों में तीसरी लहर के बढ़ते जोखिम के खिलाफ चेतावनी दी है, खासकर कर्नाटक में. दूसरी लहर से सीखे गए सबक से अधिकारियों को इस संकट से तेजी से निपटने के लिए रोडमैप तैयार करने और प्रभावित नागरिकों के लिए उचित दवा और देखभाल की व्यवस्था करने में मदद मिलनी चाहिए. हमारा फोकस तीसरी लहर की तैयारियों पर और अर्थव्यवस्था में गति को जारी रखने पर होना चाहिए.
कई नागरिक अभी भी नौकरी चले जाने और वेतन में कटौती से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. कई लोग कर्ज में डूबे छोटे उद्यमों के बंद होने के कारण गरीबी में चले गए हैं. यह एक कठिन काम हो सकता है, लेकिन रिकवरी की यात्रा में सरकारी एजेंसियों की विफलताओं से उत्पन्न बाधाएं नहीं आनी चाहिए.
वैक्सीन प्रबंधन का भी बहुत महत्व है. सभी अर्थशास्त्री और एजेंसियां इस बात पर एकमत हैं कि आर्थिक विकास की गति काफी हद तक टीकाकरण की गति पर निर्भर करेगी. सरकार को इस पर खास ध्यान देना चाहिए और वैक्सीनेशन के आंकड़े में कोई गिरावट नहीं आने देनी चाहिए. यह तीसरी लहर को नियंत्रित कर सकता है और अर्थव्यवस्था को इसके प्रभाव से भी बचा सकता है.