भारतीय सिनेमा ने कई एक्टर दिए हैं. इनमें से कुछ हीरो बन गए, लेकिन ऐसे एक्टर्स की संख्या बेहद कम है जो एक लीजेंड या महान अभिनेता के तौर पर कायम हुए. दिलीप कुमार इन्हीं में से एक हैं. उनका जन्म एक एक फल कारोबारी के यहां हुआ था और उन्हें मुहम्मद यूसुफ खान के नाम से जाना जाता था. बचपन में ही वे महाराष्ट्र आ गए. उन्हें न सिर्फ ट्रेजडी किंग कहा जाता है, बल्कि वे एक्टिंग की दूसरी विधाओं में भी उतने ही मजबूत थे. रे ने उन्हें एक अल्टीमेट मेथड एक्टर कहा था. आज भी वे भारत के सबसे ज्यादा सम्मानित फिल्म सितारों में गिने जाते हैं.
दिलीप कुमार देश के पहले सुपरस्टार भी थे. उनके दौर में फैन मैनेजमेंट स्ट्रैटेजी बनाने वाली पीआर फर्में भी नहीं होती थीं और न ही मार्केटिंग की टीमें होती थीं जो अमीर कंपनियों के विज्ञापन उन्हें दिलातीं. वे स्क्रीन पर अपने टैलेंट के लिए जाने जाते थे.
एक के बाद एक शानदार फिल्मों- मेला (1948), अंदाज (1949), दीदार (1951), आन (1952), आजाद (1955), देवदास (1955), मुगले आजम (1960), कोहिनूर (1960), गंगा जमुना (1961), क्रांति (1981) – के जरिए उन्होंने अपने अभियन का लोहा मनवाया.
2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुगले आजम- जिसमें दिलीप कुमार ने शहजादे सलीम की भूमिका निभाई थी- महंगाई से एडजस्ट करके देखा जाए तो देश की अब तक सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्म है.
दिलीप कुमार की शख्सियत भी उतनी ही जिंदादिली और गंभीरता से भरी हुई थी. उन्होंने आम लोगों और उनकी जिंदगियों में मौजूद दिक्कतों को अपने अभिनय से जीवंत कर दिया. इसी वजह से उन्हें ट्रेजडी किंग कहकर बुलाया जाता था.
बाद में इस तरह की खबरें आईं कि उन्होंने कम गंभीर रोल करने इस वजह से शुरू किए हैं क्योंकि कुछ मनोचिकित्सकों ने उन्हें सलाह दी थी कि इस तरह की बेहद संजीदा भूमिकाओं से उनके मनोविज्ञान पर बुरा असर पड़ रहा है.
दिलीप कुमार के जीवन का एक सबसे अहम पक्ष ये था कि वे भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में उतने ही पॉपुलर थे. वे उन कुछ लोगों में शुमार थे जिन्होंने दो पड़ोसी मुल्कों के बीच रहे रक्तरंजित दौर में भी लोगों को एकजुट करने का काम किया था.
2014 में दिलीप कुमार के पेशावर के पैतृक घर को नेशनल हेरिटेज का दर्जा दिया गया. उन्हें पाकिस्तान ने 1998 में अपना सबसे बड़ा नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान भी दिया.
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