Digital Village: सचमुच पंखों से नहीं बल्कि हौसलों से उड़ान होती है, और आसमान का सफर असीमित भले ही हो लेकिन हौसलों के पंख से उसे नापा जा सकता है. जी हां, ऐसा ही एक कारनामा कर बिहार का एक गांव इन दिनों खासा चर्चा में आ गया है. इसी को लेकर सब आश्चर्यचकित भी हैं. ध्यान रहे कि यह सबकुछ उस दौरान हुआ है, जब पूरी दुनिया कोरोना काल जैसे कठिन दौर से गुजर रही है.
दरअसल, बिहार में बक्सर जिले के सदर प्रखंड का ‘दलसागर’ गांव केंद्र सरकार के डिजिटल इंडिया के कांसेप्ट को वास्तविक धरातल पर हूबहू साकार कर रहा है. सिर्फ इतना ही नहीं, इस संदर्भ में ग्रामीणों के बीच जागरूकता लाने के लिए कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है. ये आयोजन भी ग्रामीण युवकों द्वारा ही किए जा रहे हैं। राष्ट्रीय इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्यौगिकी संस्थान द्वारा दलसागर गांव को जिले का पूर्ण डिजिटल गांव (Digital Village) का दर्जा दिया गया है.
सुखद आश्चर्य यह है कि छह 100 परिवारों के आबादी वाले इस गांव में ग्रामीण महिलाओं की उंगलिया अभ मोबाइल पर थिरकती नजर आ रहीं हैं. इन महिलाओं द्वारा निपुणता पूर्वक मोबाइल के माध्यम से अनेकों कार्य आज घर बैठे ही निपटाए जा रहे हैं. कभी इसके लिए ग्रामीण महिलाएं पूरी तरह से पुरुषों पर आश्रित हुआ करती थीं.
पुरुषों को भी छोटी से छोटी आवश्यकताओं के लिए कभी-कभी दस किलोमीटर की दूरी तय कर जिला मुख्यालय की शरण लेनी पड़ती थी. बात चाहे रुपये ट्रांसफर करने की हो, मोबाइल में रिचार्ज करने की या गैस बुकिंग करने की और बच्चो की स्कूली फीस जमा करने की, अब इन सभी कामों को डिजिटल रूप में अंजाम दिया जा रहा है। क्या पुरुष क्या महिला सभी इस काम में दक्ष हैं.
केंद्र सरकार की योजनाओं की और से जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि द्वारा सोलर लाईट से पूरे गांव को रौशन कर दिया गया है. गांव के युवकों द्वारा गांव में तीन की संख्या में कॉमन सर्विस सेंटर चलाए जा रहे हैं, जिसमें एक शारदा सेंटर इस गांव की युवतियों के द्वारा संचालित है. कोरोना के इस दौर में उक्त सेंटर के माध्यम से ग्रामीण स्थानीय सांसद द्वारा शुरू किये गये टेलीमेडिसिन समेत प्राथमिक स्वास्थ्य जांच अमूमन सुगर लेबल की जांच हीमोग्लोबिन, टायफाइड, मलेरिया इत्यादि की जांच आसानी से कर ले रहे हैं. टेलीमेडिसिन से केवल लोगों को ही नहीं, बल्कि पशुओं को भी इलाज की व्यवस्था दी जा रही है.
उल्लेखनीय है कि डिजिटल गांव के अंतर्गत कुछ संस्थानों द्वारा निःशुल्क ग्रामीण युवक, युवतियों समेत जागरूक पढ़ी-लिखी महिलाओं को टैली, ट्रिपल-सी और बीसीसी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. प्रशिक्षण पश्चात लोगों को नाईलेट का प्रमाणपत्र भी दिया जा रहा है. ताकी प्रशिक्षण के बाद ग्रामीण युवा रोजगार की दिशा में आगे बढ़ सकें. छह सौ परिवारों में अबतक एक सौ पांच युवक व युवतियां विभिन्न संस्थानों से जुड़कर घर बैठे ही रोजगार कर रही हैं.
डिजिटल इंडिया के कांसेप्ट को गांव में साकार होता देख तीन एनजीओं द्वारा गांव को वाईफाई की सुविधा से निम्न चार्ज पर लैस किया गया है. ऐसा नहीं है कि इस गांव को कामयाबी यूं ही मिल गई बल्कि इसके पीछे गांव के पढ़े-लिखे युवक-युवतियों का कठिन परिश्रम छुपा है. इन्होनें पहले अपने-अपने घरों की महिलाओं को साक्षर किया और फिर आस-पड़ोस के लोगों को. आज आलम यह है कि जिले का यह पहला गांव है जहां साक्षरता दर 95 प्रतिशत है.
सरकार का मकसद डिजिटल साक्षर बनाने के अलावा लोगों को स्वावलम्बी भी बनाना है. अतः इस दिशा में कुछ ग्रामीण युवक महिलाओं द्वारा नैपकिन, पत्तल-डोंगा, एलईडी बल्ब बना कर या रिपेयर कर अच्छी आर्थिक आय की जा रही है. ग्रामीण महिलाओं द्वारा कोरोना काल में एक लाख मास्क बनाए गए और स्थानीय बजार को जरूरत के अनुरूप सप्लाई कर उन्हें खपाया भी गया. इस कार्य में सेविका दीदियों द्वारा इसका भरपूर सहयोग किया गया है.
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