राजनेताओं के किए जाने वाले वादे लंबे वक्त से लोगों के मजाक और कार्टूनिस्ट्स के लिए मसाला देने का काम करते आए हैं. लोगों का भरोसा नेताओं के वादों से पूरी तरह से उठ चुका है. ऐसे में दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 जुलाई को एक अहम फैसला सुनाया है. इसमें कहा गया है कि दिल्ली सरकार को अपने उस वादे को पूरा करना चाहिए जिसमें अरविंद केजरीवाल ने वादा किया था कि अगर कोई शख्स लॉकडाउन के चलते घर का किराया नहीं दे पाएगा तो सरकार उसका किराया चुकाएगी. जज ने कहा है कि एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्यमंत्री का किया गया वादा लागू किए जाने योग्य वादा है और गुड गवर्नेंस में इस तरह के वादों को लागू किए जाने की उम्मीद की जाती है.
ये फैसला एक ऐसे देश में व्यापक परिणाम पैदा करने वाला हो सकता है जहां राजनेता पारंपरिक तौर पर अपनी बातों पर टिके नहीं रहते. जज का ऑब्जर्वेशन तात्कालिक मसले से परे एक मिसाल बनेगा और इससे पारदर्शिता और जवाबदेही पैदा होगी.
नेताओं पर आम लोगों के घटते भरोसे की तमाम वजहों में से एक ये भी है कि जन प्रतिनिधि आम लोगों के बीच किए गए अपने वादों को पूरा नहीं करते हैं. मनमर्जी से कुछ भी वादा कर देने से रैलियों में तो नेताओं को वाहवाही मिल जाती है, लेकिन स्थाई तौर पर इससे लोगों के बीच उनकी साख खत्म होती है.
अगर कोई फैसला दिहाड़ी मजदूरों के लिए दिल्ली सरकार का खजाना खोलने में कारगर साबित होता है तो ये राजनीतिक संस्कृति के लिहाज से एक अच्छा कदम माना जाएगा.
रेवड़ियां बांटने की राजनीति देश में लगातार जड़ें पकड़ रही है. ऐसे में नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस में मनचाहे वादे कर देते हैं. इस फैसले से अब नेताओं को कुछ भी बोलने से पहले दो बार सोचना पड़ेगा.
एक आम आदमी के लिए ये बड़ी राहत होगी क्योंकि अब नेता अपने शब्दों के वजन को लेकर ज्यादा जागरूक रहेंगे.